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राजस्थान की प्रमुख जनजातियां - Tribes of Rajasthan in Hindi

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राजस्थान की प्रमुख जनजातियां : आज की इस पोस्ट में राजस्थान की प्रमुख जनजातियां (गरासिया जनजाति, सहरिया जनजाति, मीणा जनजाति, भील जनजाति, डामोर जनजाति, कथौड़ी जनजाति कंजर जनजाति, सांसी जनजाति) पर एक विस्तृत लेख लिखा गया है। इसमें आप सभी के सवाल गरासिया जनजाति राजस्थान, अनुसूचित जनजाति राजस्थान, राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति, राजस्थान की प्रमुख जनजातियों का विस्तृत अध्ययन, सहरिया जनजाति के बारे में,  राजस्थान की जनजातियां Trick PDF Download आदि से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य शामिल किये गए है। आप सभी इसको पूरा जरूर पढ़ें:- 
राजस्थान की प्रमुख जनजातियां - Tribes of Rajasthan in Hindi
राजस्थान की प्रमुख जनजातियां

राजस्थान की गरासिया जनजाति

  • गरासिया जनजाति राजस्थान की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है।
  • गरासिया राजस्थान में सबसे अधिक सिरोही (अबूरोड) और फिर उदयपुर में रहती है।
  • गरासिया जनजाति माउंट आबू के अग्निकुंड से अपनी उत्पत्ति मानती है और खुद को चौहान राजपूतों का वंशज मानती है।
  • राजस्थान में गरासियाओं का मूल स्थान आबूरोड़ का भाखर क्षेत्र है।
  • कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार गरासिया शब्द की उत्पत्ति गवास/गवाक्ष शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है - सर्वेंट। 
  • भाखर बावजी का सम्बन्ध गरासिया जनजाति से है।
  • गरासिया जनजाति के एक सम्मानित व्यक्ति के निधन के बाद उनकी याद में बनाए गए स्मारक को हुर्रे या मोगी कहा जाता है।
  • गरासिया जनजाति में अंतिम संस्कार 12 वें दिन किया जाता है।
  • गरासिया जनजाति की बोली भीली से मिलती जुलती है, लेकिन इसमें गुजराती और मराठी बोलियों के कुछ शब्द भी शामिल हैं।
  • गरासिया जनजाति में त्योहारों की शुरुआत अखातीज से होती है, लेकिन इस जनजाति के मुख्य त्योहार होली और गणगौर हैं।
  • गरासिया जनजाति का सबसे बड़ा मेला - मानखरो मेला (सियावा गाँव - सिरोही) और दूसरा मुख्य मेला घोटिया अम्बा का मेला (बांसवाड़ा) है। अन्य मेले - भाखर बावजी का मेला, नेवटी मेला, देवला मेला, ऋषिकेश मेला आदि।
  • गरासिया जनजाति का आदर्श पक्षी मोर है।
  • गरासिया जनजाति सफेद जानवरों को पवित्र मानती है और इस जनजाति में बंदर का मांस लोकप्रिय है।
  • गरासिया जनजाति में कृषि के सामूहिक रूप को थावरी कहा जाता है और अनाज भंडारण कक्ष को सोहरा कहा जाता है। 
  • हारी-भावरी कृषि का रूप गरासिया जनजाति में प्रचलित है।
  • गरासिया जनजाति में घर के बाहर बरामदे को ओसरा कहा जाता है।
  • गरासिया जनजाति में अतिथि को मांड कहा जाता है।
  • गरासिया जनजाति के प्रिय वाद्य यंत्र - बांसुरी, अलगोजा, नगाड़ा आदि।
  • गरासिया जनजाति का पवित्र स्थान नक्की झील है, जहाँ यह जनजाति अपने पूर्वजों की अस्थियों को विसर्जित करती है। यह जनजाति जनजातियों में सबसे अंधविश्वासी है। यह एकमात्र ऐसी जनजाति है, जिसमें प्रेम विवाह/लवमैरिज होते हैं, क्योंकि इस जनजाति के लोग जीवनसाथी मेले में चुनते है।
  • गरासिया जनजाति में एक छोटी गांव इकाई को फालिया कहा जाता है।
  • गरासिया जनजाति में घर को घेर, बिखरे गाँव को पाल और पंचायत के मुखिया को सहलोत/ पालवी कहा जाता है।
  • गरासिया जनजाति में परिवार पितृसत्तात्मक और एकाकी में विभाजित किया जाता है।
  • गरासिया जनजाति लोक देवता घोड़ा बावसी की पूजा करती है।
  • गरासिया जनजाति में शिव, भैरव और दुर्गा की भी पूजा की जाती है।
  • गरासिया लोगों को कपड़ों पर कढ़ाई करना बहुत पसंद है।
  • गरासिया जनजाति बहुत ही भोली-भाली, ईमानदार, बहुमुखी एवं मेहनती होती है।
  • गरासिया जनजाति में प्रचलित नृत्य - लूर, वालर, मांदल, रायण, गौर, जवारा, मोरिया, कूंद आदि। 

गरासिया जनजाति के दो भाग -

गरासिया जनजाति मुख्य रूप से दो भागों (भील गरासिया तथा गमेती गरासिया) में विभाजित है, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है :-
  • भील गरासिया - एक गरासिया पुरुष के एक भील महिला से शादी करने पर उस गरासिया पुरुष को भील गरासिया कहा जाता है। ऐसे परिवार को भील गरासिया परिवार कहते है।
  • गमेती गरासिया - जब एक भील पुरुष गरासिया महिला से शादी करता है, तो ऐसे परिवार को गमेती गरासिया कहा जाता है।

सामाजिक परिवेश के आधार पर गरासियों के उपवर्ग -

सामाजिक परिवेश के आधार पर गरासिया जनजाति को मुख्य रूप से तीन उपवर्गों में विभाजित किया जाता है, जिनके नाम निम्न प्रकार है:-
  • मोटी नियात - ये गरासियों में सबसे ऊंचे वर्ग हैं, जो खुद को बाबोर हाइया कहते हैं।
  • नेनकी नियात - ये गरासियों में मध्यम वर्ग के लोग हैं, जो माडेरिया कहलाते है।
  • निचली नियात - ये गरासियों में निम्न वर्ग के लोग हैं।

गरासिया जनजाति में विवाह के प्रकार -

  • मोरबंधिया - यह शादी पूरी रीति-रिवाज के साथ एक ब्रह्म विवाह की तरह होती है, जिसमें दुल्हन को दुल्हन के जोड़े में बांधा जाता है और चंवरी में फेरे लेकर शादी की जाती है।
  • ताणना - इसमें मन पसंद की कन्या से शादी होती है, इसमें सगाई, चंवरी एवं फेरे की रस्में नहीं होती है। 
  • पहरावना - इस विवाह में ब्राह्मण के बिना नाममात्र के फेरे होते हैं।
  • सेवणा - गरासियों में प्रचलित इस विवाह में स्त्री प्रेमी के साथ भागकर विवाह करती है।
  • मेलबो विवाह - गरासियों में प्रचलित इस विवाह में विवाह के खर्चे को बचाने के लिए वधू को वर के घर छोड़ देते है।
  • सेवा विवाह - इस प्रथा में वर, वधू के घर घर जंवाई बनकर रहता है।

गरासिया जनजाति से सम्बंधित शब्दावली -

  • दापा - दूल्हे द्वारा दुल्हन को दिया जाने वाला मूल्य दापा कहलाता है।
  • घेंटी - इस जनजाति में आटा पीसने के लिए हाथ से संचालित चक्की को घेंटी कहते है।
  • झुलकी - गरासिया पुरुषों की कमीज को झुलकी कहा जाता है।
  • आणा करना - गरासिया जनजाति में विधवा विवाह को आणा या नातरा कहा जाता है।
  • भाटली - गरासिया जनजाति में हाथों में पहना जाने वाला एक गहना।
  • डूबकी  - इस शगुन पक्षी की पूजा गरासिया जनजाति के लोग मकर सक्रांति के अवसर करते है।
  • अनाला मोरयु प्रथा - इसे प्रथा में नवजात शिशु के नाल को काटकर गाड़ा जाता है।
  • खेवणा - गरासिया जनजाति में विवाहित महिला का अपने प्रेमी के साथ भागकर विवाह करना खेवणा कहलाता है।
  • 'हैलो लेवे’और 'पैसा ओछा पेरिया’ - यह गरासियों का प्रसिद्ध लोकगीत है।
  • खाटला - इस जनजाति में चारपई को खटला कहा जाता है।
  • फाग - गरासियों की महिलाओं के कपड़ों को फाग कहा जाता है।
  • माटला - इस जनजाति में मटकी को माटला कहा जाता है।
  • कांदिया/गेह - गरासियों के मृत्युभोज को कांदिया कहा जाता है।
  • हेलरू - यह गरासिया जनजाति के विकास के लिए संचालित एक सहकारी संगठन है।
  • हंसली - गरासिया जनजाति में गले में पहना जाने वाला एक आभूषण।
  • झूले - गरासिया महिलाओं द्वारा बालों में पहना जाने वाला एक गहना।

राजस्थान की सहरिया जनजाति

  • सहरिया जनजाति राजस्थान की सबसे पिछड़ी और एक वनवासी जनजाति है।
  • सहरिया जनजाति राजस्थान में किशनगंज और शाहाबाद (बारां) में सबसे अधिक निवास करती है।
  • सहरिया शब्द की उत्पत्ति फारसी शब्द सहर से हुई है, जिसका अर्थ है - वनो में निवास करने वाले (वनवासी)। जंगल से ही इनका निर्वाह होता है।
  • भारत सरकार ने राजस्थान की एकमात्र सहरिया जनजाति को आदिम जनजाति में शामिल किया है।
  • सहरिया जनजाति की बस्ती को 'सहराना' नाम से तथा इनके गांव को 'सहरोल' नाम से पुकारा जाता है।
  • सहारिया जनजाति के गाँव की सबसे छोटी इकाई को फलां कहा जाता है।
  • सहरिया जनजाति में बहु पत्नी प्रथा का प्रचलन है।
  • सहरिया जनजाति का आदिगुरु - वाल्मीकि
  • सहरिया जनजाति के मुख्य देवता - तेजाजी
  • सहरिया जनजाति की कुलदेवी - कोंडिया देवी
  • सहरिया जनजाति की मुख्य कृषि फसल ज्वार है, यह इनका मुख्य भोजन भी है।
  • संकल्प संस्थान - मामूनी के संकल्प संस्थान सहारिया जनजाति में जन जागरूकता के लिए काम करने वाला एक संगठन है।
  • माँ बाड़ी योजना - यह योजना 2000 ईस्वी में शाहबाद और किशनगढ़ में सहरिया जनजाति को शिक्षा प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी।
  • सहरिया जनजाति में गांव के मुखिया को कोतवाल कहा जाता है।
  • सहरिया जनजाति में झोंपड़ी को गोपना या कोरुआ या टोपा कहा जाता है।
  • धारी संस्कार इस जनजाति से संबंधित है, इस संस्कार के माध्यम से यह जनजाति पुन: जन्म की भविष्यवाणी करती है।
  • सहरिया जनजाति द्वारा होली के अवसर पर फाग और राई नृत्य किया जाता है।
  • सहरिया जनजाति में दीपावली के अवसर पर हिंडा गाने की प्रथा है।
  • सहरिया जनजाति राजस्थान की सबसे शर्मीली जनजाति है और भीख नहीं मांगती है।
  • राज्य सरकार द्वारा सहरिया जनजाति के विकास के लिए सहरिया विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 
  • सहरियों की अंगरखी को सलूका कहा जाता है।
  • सहरिया जनजाति में तंग धोती को पंछा, साफा को खपट्टा कहा जाता है।
  • सहरिया जनजाति में विवाहित महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों को रेजा कहा जाता है।
  • सहारिया जनजाति का मुख्य मेला हाड़ौती अंचल में आयोजित सीताबाड़ी मेला (बारां) है। सीताबाड़ी के मेले को सहारिया जनजाति का कुंभ कहा जाता है।
  • कुसिला - घरेलू सामानों रखने की कोठरी।
  • भडेरी - एक अनाज रखने वाली कोठरी।
  • सहरिया जनजाति में नृत्य के कार्यक्रमों में पुरुष एवं महिला वर्ग एक साथ मिलकर नहीं नाचते है।
  • सहरिया जनजाति के प्रमुख मेले - कपिल धारा, सीताबाड़ी (बारां)

सहरिया जनजाति के प्रमुख नृत्य -

  • बंगल - इस जनजाति में सामूहिक रूप से इस नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है।
  • इंदरपरी नृत्य - यह नृत्य पुरुषों द्वारा उनके मुंह पर विभिन्न मुखौटे लगाकर किया जाता है।
  • झेला नृत्य - यह नृत्य आषाढ़ के महीने में फसल कटाई के समय युगल में किया जाता है। 

राजस्थान की कथौड़ी जनजाति

  • कथौड़ी जनजाति राजस्थान में मुख्यत: उदयपुर (कोटड़ा, झाड़ोल और सारदा) में रहते हैं।
  • ये मूल रूप से महाराष्ट्र के निवासी हैं।
  • कत्था बनाने में दक्ष होने के कारण ये कथौड़ी कहलाएं।
  • ये खेर के पेड़ों से हांड़ी प्रणाली से कत्था तैयार करती है।
  • इस जनजाति की महिलाएं मराठी शैली में साड़ी पहनती हैं, जिसे फड़का कहा जाता है।
  • कथौड़ी जनजाति में पति-पत्नी एक साथ बैठकर शराब पीते हैं।
  • इस जनजाति के दल का नेता नायक कहलाता है।
  • इस जनजाति में गहने पहनने का कोई रिवाज नहीं है, लेकिन शरीर गोदने का महत्व है।
  • सभी कथौड़िया मांसाहारी हैं। इस जनजाति में गाय और लाल मुंह वाले बंदर का मांस बहुत लोकप्रिय है। 
  • यह जनजाति मांस के साथ मक्का और ज्वार की रोटी खाती है।
  • इस जनजाति के सबसे लोकप्रिय नृत्य लावणी हैं, लेकिन मावलिया नृत्य नवरात्रि के अवसर पर करते हैं। 
  • इस जनजाति की मुख्य आराध्य देवी कंसारी देवी और भारी माता हैं, जबकि मुख्य आराध्य देवता डूंगर देव और बाघ देव हैं।
  • इस जनजाति के प्रमुख वाद्ययंत्र - थालीसर एवं गोरिडिया

राजस्थान की मीणा जनजाति 

  • राजस्थान में निवास करने वाली जनजातियों में मीणा पहले स्थान पर हैं, मीणा जनजाति सर्वाधिक जयपुर में रहते हैं, उसके बाद अलवर में रहते हैं।
  • मीणा शब्द का शाब्दिक अर्थ है - मछली या मत्स्य।
  • मीणाओं के इष्टदेव भूरिया बाबा/गौतमेश्वर (मीणा समुदाय के लोग भूरिया बाबा की कभी झूठी कसम नहीं खाते) हैं।
  • मीणाओं के गुरु - मुनि मगर सागर
  • मीणाओं का सबसे पवित्र ग्रंथ - मीनपुराण
  • मीनाओं का प्रयागराज रामेश्वरम धाम (सवाईमाधोपुर) है, यह मेला चंबल, बनास और सीप नदियों के त्रिवेणी संगम पर भरता है।
  • मीणाओं के मुखिया को पटेल कहा जाता है।
  • मीणाओं के कच्चे घरों को छपरा या टापरा कहा जाता है।
  • मोरनी मांडणा कार्यक्रम मीणाओं के कच्चे घरों में होते हैं।
  • मीणाओं में पंचायत को चौरासी कहा जाता है।
  • मीणा जनजाति में ताराभांत की ओड़नी सबसे लोकप्रिय है।
  • कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार मीणाओं का मूल निवास कालीखोह पर्वतमाला (अजमेर से आगरा) के बीच स्थित है।
  • कैंब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया के अनुसार, मीनाओं में पूर्व-द्रविड़ियन रक्त समूह हैं।
  • मीणा जनजाति के लोग गोवर्धन पर्व पर हथियारों का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
  • मीणा जनजाति सबसे शिक्षित जनजाति हैं।
  • मीणा जनजाति का पसंदीदा पक्षी मोर है।

मीणा जनजाति के प्रमुख रूप -

  • जमींदार मीणा - ये लोग पशुपालन करते है। ये आर्थिक दृष्टि से समृद्ध होते है।
  • चौकीदार मीणा - ये लोग राजाओं एवं जागीरदारों के महलों की चौकीदारी करते थे।

मीणा जनजाति की प्रमुख प्रथाएं -

  • झगड़ा प्रथा - यदि कोई पुरुष विवाहित महिला से विवाह करता है, तो उसके पूर्व पति को राशि का भुगतान करना पड़ता है, इसे 'झगड़ा रकम' (मुआवजे की रकम) कहा जाता है।
  • बढ़ालिया - वैवाहिक संबंधों में मध्यस्थता करने वाले व्यक्ति को "बढ़ालिया" कहा जाता है।
  • कीकमार - मीणा जनजाति के लोग मुसीबत के समय जोर-जोर से चिल्लाते हैं, जिसे कीकमार कहा जाता है।
  • गेली - मीणा जनजाति में युवक के हाथों में बंधी लकड़ी को गेली कहा जाता है।
  • गोटन - मीणाओं के दोस्तों के समूह को गोटन कहा जाता है।
  • छेड़ा फाड़ना - मीनाओं में पति और पत्नी के बीच के झगड़े होने के बाद ग्राम पंचायत बीच पत्नी के हाथ में पत्नी के दुपट्टे के कुछ हिस्से को पति फाड़कर देता है, जिसे छेड़ा फाड़ना (तलाक) कहा जाता है।
  • नाता प्रथा - यदि एक विवाहित महिला अपने पहले पति को छोड़ देती है और दूसरे पति के साथ रहने लगती है, तो उसे "नाता" कहा जाता है।
  • आटा-साटा प्रथा - लड़की के बजाय लड़के की शादी को "आटा-साटा प्रथा" कहा जाता है।

राजस्थान की डामोर जनजाति

  • यह जनजाति राजस्थान में सबसे अधिक सीमलवाड़ा (डूंगरपुर) और बांसवाड़ा में रहती है।
  • इस जनजाति द्वारा पंचायत के मुखिया को मुखी कहा जाता है।
  • इनके गांव की छोटी इकाई फलां कहलाती है।
  • इस जनजाति के पुरुष भी महिलाओं की तरह गहने पहनते हैं।
  • इस जनजाति में गुप्त विवाह निषेध हैं।
  • ये जनजातियाँ कृषि पर आधारित हैं और राजस्थान की एकमात्र जनजातियाँ हैं, जो वनों पर निर्भर नहीं हैं।
  • इस जनजाति का मुख्य मेला ग्यारस की रेवाड़ी मेला (डूंगरपुर) तथा गुजरात में झेला बावजी का भरता है।
  • होली के अवसर पर यह जनजाति चाडिया नामक कार्यक्रम का आयोजन करती है।
  • गुजरात के निवासी डामोर अपनी स्थानीय भाषा में गुजराती का उपयोग करते हैं।
  •  इस जनजाति में शादी का मुख्य आधार दुल्हन की कीमत है।

 राजस्थान की सांसी जनजाति

  • यह जनजाति सबसे अधिक भरतपुर में रहती है।
  • ऐसा माना जाता है कि इस जनजाति की उत्पत्ति सांसमल नामक व्यक्ति से हुई है।
  • इस जनजाति को 2 उपजातियों में बांटा गया है - बीजा एवं माला
  • यह जनजाति हरिजन को अपने से श्रेष्ठ मानती है और हरिजन के साथ अपने विवाद को हल करती है।
  • कुकड़ी की रस्म - सांसी जनजाति की इस रस्म के तहत विवाहोपरांत युवती को अपनी चारित्रिक पवित्रता की परीक्षा देनी होती है।
  • यह जनजाति भाखर बावजी को अपना सरंक्षण देवता मानती है।
  • इस जनजाति में विधवा विवाह की प्रथा नहीं है।

राजस्थान की भील जनजाति 

  • यह राजस्थान की सबसे पुरानी जनजाति है, जो मीणा जनजाति के बाद दूसरे स्थान पर है।
  • यह जनजाति राजस्थान सर्वाधिक उदयपुर में और उसके बाद बांसवाड़ा में रहती है।
  • भील की उत्पत्ति बील से हुई है, जिसका अर्थ है - "तीर चलाने वाला"
  • भील खुद को महादेव की संतान मानते हैं।
  • कर्नल जेम्स टॉड ने भीलों को वन पुत्र कहा है।
  • भील जाति में घर को 'कू' या 'टापरा' कहा जाता है।
  • भीलों के गांव के मुखिया को 'पालवी/तदवी' कहते है। 
  • भीलों के सभी गांवों के पंचायत के मुखिया को 'गमेती' कहते है।
  • भीलों के बहुत से झोपड़ियों को पाल कहा जाता है और पाल के मुखिया को पालकी कहा जाता है। 
  • भीलों के गांव के मोहल्ले को फंला कहा जाता है।
  • भील जाति के लोग काण्डी शब्द को अपमानजनक मानते हैं (काण्डी का अर्थ है - तीर चलाने वाला)।
  • इस जाति में पाडा शब्द को सम्मानजनक माना जाता है (पाडा का अर्थ 'शक्तिशाली' होता है)।
  • भीलों में पथरक्षक देवी पथवारी और वैवाहिक देवी भराड़ी हैं।
  • भीलों का पवित्र वृक्ष महुवा है, भील महुवा के फूलों से ​​ताड़ी पेय बनाते है, इस पेय को भीलों का सोमरस कहा जाता है।
  • भील आबादी वाले क्षेत्र को भोमट या मगरा कहा जाता है।
  • भीलों का पसंदीदा भोजन मक्के की रोटी और प्याज है।
  • भीलों में रोगोपचार की विधि डाम देना कहलाती है।
  • भीलों के तंग धोती को ढेपाड़ा कहा जाता है, ढीली धोती खोयतू, सिर का साफा पोत्या, अंगोछा को फालू कहा जाता है।
  • महिलाओं के अधोवस्त्र 'कछाबू', सिर पर बांधने का कपड़ा 'चीरा' कहा जाता है।
  • भीलों की मुख्य पोशाक को अंगरूठी कहा जाता है।
  • शादी के अवसर पर महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली लाल रंग की साड़ी को सिंदूरी कहा जाता है और पीले रंग की साड़ी को पिरिया कहा जाता है।

भीलों से सम्बंधित महत्वपूर्ण शब्दावली -

  • भगोरिया - भील युवक इस त्योहार पर अपना जीवन साथी चुनते हैं।
  • पाखरिया - वह भील जिसने एक सैनिक के घोड़े को मार दिया।
  • हमसीढों - भील पुरुषों और महिलाओं द्वारा गाया गया एक सामूहिक गीत।
  • होवण - भीलों द्वारा प्राकृतिक प्रकोप और दैनिक प्रकोप से बचने के लिए, इस देवी की पूजा की जाती है।
  • खोडियाल - यह देवी विकलांग भीलों की इच्छाओं को पूरा करती है।
  • देवाल ढोल - गाँव में बीमारी का संदेश देने वाला ढोल।
  • नाचनिया ढोल - शादी या मांगलिक अवसरों पर बजाया जाने वाला ढोल।
  • कोदरा- भीलों द्वारा उपयोग किए जाने वाले जंगली अनाज को कोदरा कहा जाता है।
  • विला - भीलों के मंदिरों में पुजारी को विला कहा जाता है।
  • सिरा-चैकली/चीरा बावसी - भील जनजाति में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर वे उसकी घर या खेत में एक पत्थर की मूर्ति स्थापित करते हैं, इसे चीरा बावसी कहते हैं।
  • आगद - पुरुष के श्वेत स्मारक को आगद कहा जाता है।
  • राड खेलना - भीलों द्वारा खेली जाने वाली होली ।
  • राड - गलियाकोट और सागवाड़ा (डूंगरपुर) में भील ​​गोबर से राड खेलते हैं।
  • नोतरा - भील जनजाति में विवाह के समय दूल्हे द्वारा दुल्हन पक्ष को दी जाने वाली राशि।
  • भराडी - यह भीलों की वैवाहिक देवी हैं।
  • चिराबावसी - भीलों द्वारा किसी पूर्वज की लकड़ी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की जाती है।
  • डागला - भीलों का एक छपरा, जिस पर अनाज या चारा सूखाया जाता है।
  • ढालिया - भीलों के घरों के बाहर का बरामदा।
  • हाथीवेडो - भीलों द्वारा पीपल या बांस के पेड़ों को साक्षी मानकर शादी करने की परंपरा।
  • मातलोक - भील जनजाति में महिलाओं के काले पत्थरों से बने स्मारक को मातलोक कहा जाता है।
  • अटक - भीलों की एक गौत्र।
  • पारड़ा - भीलों  इस क्षेत्र से गुर्जर से अपनी उत्पत्ति मानते हैं।
  • बराड़ - मध्यकाल में भीलों से वसूला जाने वाला कर।
  • राजस संघ - उपज के लिए भीलों को उचित लाभ प्रदान करने के लिए उदयपुर में कार्यरत संस्था।
  • भगत - भीलों में धार्मिक संस्कार कराने वाले व्यक्ति को भगत कहा जाता है।
  • कागदर - यहाँ के भीलों को राठौड़ कहा जाता है।
  • बालापाल - यहाँ के भील कटार चैहान कहलाते है।
  • सेमल- भीलों में विवाह के समय इस पौधे को घर के बाहर लगाते हैं।
  • मसार - कल्याणपुर के ओवारी गांव के भील को मसार कहा जाता है।
  • गरासिया भील - जिन्होंने सिसोदिया भीलों में विवाह किया और उनसे जुड़े।
  • अहारी - बीलक भील हाड़ा चौहान माने जाते है। उन्हें अहारी के नाम से जाना जाता है।

राजस्थान की कंजर जनजाति

  • कंजर शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द काननचार से हुई है, जिसका अर्थ है - जंगल में विचरण करने वाला। 
  • यह जनजाति हाड़ौती क्षेत्र में सबसे अधिक निवास करती है। हाडौती में यह जनजाति सर्वाधिक कोटा में रहती है।
  • इस जनजाति की खास बात यह है कि इस जनजाति में एकता पाई जाती है और यह जनजाति सबसे ज्यादा बोलती है।
  • इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय चोरी करना है।
  • चोरी करने से पहले इस जनजाति के लोग मंदिर में जाते हैं और एक कसम अदा करते हैं, जिसे पाती मांगना कहा जाता है।
  • इस जनजाति के लोग चैथमाता और हनुमानजी के भक्त हैं।
  • चैथ माता इस जनजाति की आराध्य देवी हैं, जबकि इस जनजाति की कुलदेवी जोगणिया माता (बेंगू-चित्तौड़गढ़) हैं।
  • इस जनजाति के मुखिया को पटेल कहा जाता है।
  • इस जनजाति के घरों में पीछे की दिशा में खिड़कियों में दरवाजे नहीं हैं।
  • यह जनजाति हकीम राजा का प्याला लेकर झूठ नहीं बोलती है।
  • सभी जनजातियों में इस जनजाति की महिलाएं सबसे सुंदर हैं, जो नृत्य में माहिर हैं।
  • इस जनजाति के मुख्य वाद्य यंत्र ढोलक और मंजीरा हैं।
  • इस जनजाति में पत्नियों का आदान-प्रदान होता है, जिसे आटिया-साठिया कहा जाता है।
  • कंजर जनजाति के लोग मृतकों के मुंह में शराब डालते हैं और मृतक को दफनाते हैं।
  • इस जनजाति में राष्ट्रीय पक्षी मोर का मांस अत्यधिक प्रसिद्ध है।
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आज की इस पोस्ट में राजस्थान की प्रमुख जनजातियां (गरासिया जनजाति, सहरिया जनजाति, मीणा जनजाति, भील जनजाति, डामोर जनजाति, कथौड़ी जनजाति कंजर जनजाति, सांसी जनजाति) पर एक विस्तृत लेख लिखा गया है। इसमें आप सभी के सवाल गरासिया जनजाति राजस्थान, अनुसूचित जनजाति राजस्थान, राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति, राजस्थान की प्रमुख जनजातियों का विस्तृत अध्ययन, सहरिया जनजाति के बारे में, राजस्थान की जनजातियां Trick PDF Download आदि से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य शामिल किये गए है। आप सभी इसको पूरा जरूर पढ़ें:-
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