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राजस्थानी वेशभूषा (पहनावा) एवं खान-पान (भोजन) - Rajasthani Costumes and Food in Hindi

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राजस्थानी वेशभूषा (पहनावा) एवं खान-पान (भोजन) - Rajasthani Costumes and Food in Hindi
राजस्थानी वेशभूषा एवं खान-पान

राजस्थान में पुरुष वस्त्र (वेशभूषा)

  • पगड़ी - इसको पाग, पेचा, फालियो, साफा, घुमालो, फेटो, सेलो, अमलो, लपेटो, बागा, शिरोत्राण, फेंटा आदि नामो से भी जाना जाता है। यह सिर पर प्लेट जाना वाला लगभग 5.5 मीटर लम्बी एवं 40 सेमी. चौड़ी होती है। उदयपुर की पगड़ी प्रसिद्ध है तथा जोधपुर का साफा प्रसिद्ध है। युद्ध भूमि में केसरिया पगड़ी, दशहरे पर काले रंग की मंदील पगड़ी, होली पर फूल-पत्तियों वाली पगड़ी, विवाह पर पंचरंगी पगड़ी, श्रावण में लहरिया पगड़ी पहनी जाती है। रक्षाबंधन के अवसर पर बहिन भाई को मोठड़ा साफा देती है। मीणा एवं गुर्जर जाति की पगड़ी को फेटा कहते है।
  • धोती - पुरुष द्वारा कमर से घुटने तक पहना जाने वाला वस्त्र है। आदिवासियों/भीलों द्वारा पहनी जाने वाली धोती ढ़ेपाड़ा/डेपाड़ा कहलाती है। सहरिया जनजाति के लोग धोती को पंछा कहते है।
  • अंगरखी/बुगतरी - पूरी बाँहों का बिना कॉलर एवं बटन वाला कुर्ता जिसमे बांधने के लिए कसें होती है। यह प्राय: सफ़ेद रंग का होता है।
  • पोतिया - भील पुरुषों द्वारा पगड़ी के स्थान पर बांधा जाने वाला वस्त्र पोतिया कहलाता है।
  • शेरवानी - शादियों में पुरुषों द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र जो घुटने से लम्बा एवं कोटनुमा होता है।
  • पायजामा - अंगरखी, चुगा और जामे के नीचे कमर व पैरों में पहना जाने वाला वस्त्र पायजामा कहलाता है।
  • टोपी - यह पगड़ी की जगह सिर को ढकने का वस्त्र होता है।
  • कमीज - ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों द्वारा धोती (कमर) के ऊपर पहने जाने वाला वस्त्र।
  • चुगा - इसे चोगा भी कहते है। यह अंगरखी के ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र होता है।
  • आतमसुख - तेज सर्दी से बचने के लिए शरीर पर ऊपर से नीचे तक पहने जाने वाला वस्त्र।
  • बिरजस (ब्रिजेस) - यह पायजामे के स्थान पर पहना जाने वाला चूड़ीदार वस्त्र होता है।
  • कमरबंध - इसे पटका भी कहते है। यह जामा के ऊपर कमर पर बाँधा जाने वाला वस्त्र होता है, जिसे तलवार या कतार घुसी होती है।
  • पछेवड़ा - तेज सर्दी में ठण्ड से बचाव के लिए पुरुषों द्वारा कम्बल की तरह ओढ़े जाने वाला मोटा सूती वस्त्र पछेवड़ा कहलाता है।
  • अंगोछा - धूप से बचने के लिए पुरुषों द्वारा सिर पर बाँधा जाने वाला वस्त्र अंगोछा कहलाता है।

राजस्थान में महिलाओं (स्त्रियों) के वस्त्र/वेशभूषा

  • कुर्ती और कांचली - यह शरीर के ऊपरी हिस्से (कमर के ऊपर) पहनी जाती है। कांचली के ऊपर कुर्ती पहनी जाती है, जिसमे कांचली के बांहें होती है जबकि कुर्ती के बांहें नहीं होती है।
  • घाघरा - इसे लहंगा, पेटीकोट, घाबला आदि नामो से भी जाना जाता है। यह कमर से नीचे एड़ी तक पहना जाने वाला घेरदार वस्त्र होता है, जो कलियों को जोड़कर बनाया जाता है। आदिवासियों के घाघरे को कछाबू कहते है। आदिवासियों के नीले रंग के घाघरे को नांदना कहते है। रेशमी घाघरा जयपुर का  प्रसिद्ध है।
  • ओढ़नी (लुंगड़ी) - महिलाओं द्वारा यह सिर पर ओढ़ी जाती है। लहरिया, पोमचा, धनक, चुंदरी, मोठड़ा आदि लोकप्रिय ओढ़नियां है। डूंगरशाही ओढ़नी जोधपुर की प्रसिद्ध है। ताराभांत की ओढ़नी आदिवासी महिलाओं द्वारा ओढी जाती है।
  • लहरिया - यह श्रावण मास की तीज को पहने जाने वाली अनेक रंगों की ओढ़नी है। समुद्र लहर नामक लहरिया जयपुर में रंगा जाता है।
  • मोठड़ा - जब लहरिया की धारियां एक-दूसरे को काटती हुई बनाई जाती है, तो वह मोठड़ा कहलाती है। मोठड़ा जोधपुर की प्रसिद्ध है।
  • सलवार - कमर के ऊपर पांवों में पहना जाने वाला वस्त्र।
  • कुर्ता - यह शरीर के ऊपरी हिस्से पर पायजामा के ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र होता है।
  • कटकी - अविवाहित युवतियां द्वारा ओढी जाने वाली ओढ़नी कटकी कहलाती है।

आदिवासी महिलाओं के वस्त्र

  • तारा भांत की ओढ़नी
  • केरी भांत की ओढ़नी
  • सावली भांत की ओढ़नी
  • लहर भांत की ओढ़नी
  • ज्वार भेंट की ओढ़नी
  • लूगड़ा
  • रैजा - सहरिया स्त्री का विवाह वस्त्र
  • चूनड़ - यह एक ओढ़नी होती है, इसमें बिंदियों का सयोंजन होता है।
  • नौदना - यह आदिवासी महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र होता है।
  • रेनसाई - लहंगे की छींट जिसमे काले रंग पर लाल एवं भूरे रंग की बूटियां होती है।
  • जाम साई साड़ी - यह विवाह के समय पहना जाने वाला वस्त्र होता है, इसमें लाल जमीन पर फूल-पत्तियां होती है।

राजस्थानी खान-पान (भोजन)

  • सिरावण - यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का सुबह का नाश्ता होता है, जो प्राय: पिछली रात का बचा भोजन हुआ होता है।
  • ब्यालू - ग्रामीण क्षेत्रों में शाम के समय किया जाने वाला भोजन ब्यालू कहलाता है।
  • कलेवा - ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह के भोजन को कलेवा कहते हैं।
  • भात/रोट - ग्रामीण क्षेत्रों में मध्याह्न का भोजन जिसके अंतर्गत प्राय: बाजरा, जौ अथवा मक्के की रोटी तथा ह्री सब्जियां होती है।
  • सीरा/लापसी - यह गेहूं के आटे को घी में भूनकर उसमें चीनी और गुड़ मिलाकर बनाया जाता है।
  • सोगरी - बाजरे के आटे की बनी आकरी मोटी रोटी को सोगरी कहते हैं।
  • राबड़ी/राब - बाजरे या मक्का के आटे में छाछ मिलाकर बनाई जाती है।
  • खीचड़ो/खींच - यह बाजरे को मोठ के साथ कूटकर मिलाकर पानी के साथ गाढ़ा पकाया जाता है।
  • खाटा/कड़ी - यह छाछ में बेसन के आटे को मिलाकर बनाई गई सब्जी होती है।
  • घाट - बाजरे या मक्के के मोटे आटे को पानी या छाछ में पकाया जाता है।
  • चिलड़ा - यह मोठ के आटे में नमक, मिर्च, धनिया, जीरा आदि मिलाकर रोटीनुमा कार में बनाया जाता है।
  • धानी - मिट्टी को गर्म करके उसमें सिके हुए गर्म जौ के दाने।
  • मीठी राब या गलवान्या - यह गेहूं या बाजरे के आटे को घी में पकाकर पानी में गुड़ के साथ उबालकर बनाया जाता है।
  • भूंगड़ा - गर्म मिट्टी में सिके हुए चने के दानों को भूंगड़ा कहा जाता है।
  • निरामिष भोजन - शुद्ध शाकाहारी भोजन को निरामिष भोजन कहते हैं।
  • आमिष भोजन - मांसाहारी व्यंजन वाले भोजन को।
  • सत्तू - यह ग्रामीण क्षेत्रों में धानी के आटे को पानी एवं चीनी के साथ मिलाकर बनाया जाता है।
  • नुक़्ति - यह बेसन के छोटे-छोटे दानों को चीनी की चासनी पिलाकर बनाई जाती है।
  • शक्करपारे - यह गेहूं के आटे में गुड़ या चीनी मिलाकर तिकोने टुकड़े जिन्हे तेल में तलकर बनाया जाता हैं।
  • घुघरी - गेहूं या चने को पानी में उबालकर बनाया जाता है।
  • गुलगुले - गेहूं के आटे में गुड़ या चीनी मिलाकर घोल बनाकर तेल में तलकर बनाए गए छोटे-छोटे टुकड़े।
  • चक्की - बेसन के आटे से बनी बर्फी।
  • कांज्या -  गाजर के टुकड़ों को उबालकर मिर्च-मसाला लगाकर बनाई गई सब्जी।
  • बरिया - मोठ या चने को पानी में उबालकर मसाला मिलाकर बनाया गया व्यंजन।
  • बटल्या - गेहूं के आटे के लोई बनाकर दाल के साथ उबालकर बनाया व्यंजन।
  • पंचकुटा - यह पांच अलग-अलग फल कैर, गुन्दा, सांगरी, काचरी एवं कुमठा के मिश्रण से बनाई गई स्वादिष्ट सब्जी होती है।
  • दाल बाटी चूरमा - यह राजस्थान का प्रसिद्ध भोजन है, जो कि सवामणियों में प्राय: बनाया जाता है।
  • पंजीरी - धनिया को पीसकर उसमें बुरे को मिलाकर बनाया गया व्यंजन।
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