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राजस्थान की जलवायु एवं वार्षिक वर्षा GK : आज की इस पोस्ट में राजस्थान की जलवायु पर विस्तृत लेख लिखा गया है। Climate of Rajasthan - इसमें राजस्थान की जलवायु के प्रश्न सामान्य ज्ञान, राजस्थान की जलवायु PDF से सम्बंधित प्रश्न, राजस्थान में मावठ वर्षा, राजस्थान जलवायु सम्बंधित तथ्य आदि से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी शामिल की गयी है। आप सभी इसको पूरा जरूर पढ़ें:-
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राजस्थान की जलवायु एवं वार्षिक वर्षा |
जलवायु, ऋतु एवं मौसम में अंतर
- जलवायु किसे कहते है ? – किसी भू भाग पर लंबी अवधि के दौरान विभिन्न समयों में विभिन्न वायुमंडलीय दशाओं की औसत अवस्था को उस भू भाग की जलवायु कहते हैं। जलवायु अक्षांश, सागरतल से ऊँचाई, समुद्र से दूरी, पवनो की दिशा, पर्वतीय दिशा, मिटटी का प्रकार, भौतिक प्रदेश, इत्यादि से प्रभावित रहती है।
- मौसम किसे कहते है? - किसी भी स्थान की अल्पकालीन औसत वायुमंडलीय दशाओं में परिवर्तन को उस स्थान का मौसम कहते है।
- ऋतु किसे कहते है? - किसी भी स्थान की तीन से चार महीने की वायुमंडलीय दशाओं में बदलाव की स्थिति उस स्थान की ऋतु कहलाती है।
- जलवायु के निर्धारक घटक - तापक्रम, वायुदाब, आर्द्रता, वर्षा, वायु वेग, अक्षांश, सागरतल से ऊँचाई, समुद्र से दूरी, पवनो की दिशा, पर्वतीय दिशा, मिटटी का प्रकार, भौतिक प्रदेश आदि।
- राजस्थान का अधिकांश भाग कर्क रेखा के उत्तर में उपोषण कटिबंध में स्थित है। केवल डूंगरपुर-बांसवाड़ा जिले का कुछ भाग ही उष्णकटिबंध के अंतर्गत आता है।
- मौसम विभाग ने जलवायु को मुख्य रूप से तीन ऋतुओं में विभाजित कर रखा है - शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु।
राजस्थान की जलवायु की विशेषताएं
- वर्षा की अनिश्चितता।
- वर्षा की अनियमितता।
- खंड वर्षा - वर्षा का आसमान वितरण। दक्षिणी-पूर्वी भाग में सर्वाधिक वर्षा जबकि उत्तरी-पश्चिमी भाग में न्यूनतम वर्षा।
- मावठ - शीतकाल में भूमध्य सागर से उत्पन्न पश्चिमी विक्षोभों से राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी भाग में बहुत कम वर्षा होती है, इसे मावठ कहते है।
- तापमान में अतिशयताएँ - क्षेत्रवार तापमान में भी अधिक अंतर देखने को मिलता है।
- आर्द्रता में अंतर - विभिन्न स्थानों पर ऋतुओं में अंतर के कारण आर्द्रता में भी अंतर होता है।
राजस्थान की जलवायु के महत्वपूर्ण तथ्य
- कर्क रेखा पर स्थित क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य राजस्थान है।
- राजस्थान की अरब सागर से कुल दूरी लगभग 400 किलोमीटर है ।
- बंगाल की खाड़ी से राजस्थान की कुल दूरी 2900 किलोमीटर है।
- अरावली पर्वतमाला की समुंद्रतल से औसत ऊंचाई 930 मीटर है।
- समुंद्रतल से राजस्थान के अधिकांश भाग की औसत ऊंचाई 370 मीटर है।
- सामान्यत समुंद्रतल से ऊंचाई बढ़ने के साथ तापक्रम घटता है, जिसकी सामान्य ह्रास दर प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर 1 सेंटीग्रेट होती है। राजस्थान के सर्वाधिक नजदीक स्थित सागरीय भाग कच्छ की खाड़ी है।
- राजस्थान का औसत वार्षिक तापमान 37– 38 सेंटीग्रेड है।
- राजस्थान के सर्वाधिक गर्म महीने मई – जून महीने होते है।
- राजस्थान के सबसे ठंडे महीने दिसम्बर – जनवरी महीने होते है।
- राजस्थान में वर्षा का वार्षिक औसत 57-58 सेमी. (लगभग 57.70 सेमी.) है।
- राजस्थान में सर्वप्रथम अरब सागरीय मानसून से वर्षा होती है।
- राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून से होती है।
- राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाले महीने जुलाई – अगस्त महीने है।
- राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र दक्षिण – पूर्वी क्षेत्र है।
- राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला क्षेत्र उत्तर – पश्चिम क्षेत्र है।
- भारतीय मौसम विभाग की वैधशाला जयपुर (राजस्थान) में स्थित है।
- राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला जिला झालावाड़ (औसत 100 सेमी.) है।
- राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला जिला जैसलमेर (औसत 10 सेमी.) है।
- राजस्थान का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान माउन्ट आबू, सिरोही (125 -150 सेमी.) है।
- राजस्थान का सबसे कम वर्षा वाला स्थान सम -जैसलमेर (औसत 5 सेमी.) है।
- राजस्थान में वर्षा के दिनों की औसत संख्या वर्षभर में 29 दिन है।
- राजस्थान की औसत वार्षिक वर्षा के बराबर औसत वर्षा वाला जिला अजमेर है।
- राजस्थान को 50 सेमी. वर्षा रेखा दो भागों में विभाजित करती है। 50 सेमी. वर्षा रेखा के उत्तर-पश्चिम में वर्षा कम होती है जबकि दक्षिण – पूर्व में अधिक होती है। 50 सेमी. वर्षा रेखा अरावली पर्वत माला को माना जाता है
- राजस्थान के दक्षिण भाग में अधिक वर्षा का कारण अरावली पर्वतों की ऊंचाई है।
- राजस्थान में हवाओं की सर्वाधिक गति जून माह में होती है।
- राजस्थान में हवाओं की मंद गति नवंबर माह में होती है।
- राज्य में बार – बार पड़ने वाले सूखे व अकाल का मुख्य कारण अनियमित वर्षा है।
- राजस्थान में वाष्पोत्सर्जन की सर्वाधिक दर वाला महीना जून है।
- राजस्थान में सबसे कम वाष्पोत्सर्जन दर वाला महीना दिसम्बर है।
- राजस्थान में वाष्पोत्सर्जन की सर्वाधिक दर वाला जिला जैसलमेर है।
- राजस्थान में वाष्पोत्सर्जन की कम दर वाला जिला डूंगरपुर है।
राजस्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
- अक्षांशीय एवं देशांतरीय स्थिति
- समुद्र तट से दूरी
- समुद्र तल से ऊंचाई
- प्रचलित पवन की दिशा
- वनस्पति तत्व
- समुद्री धारा
- पर्वत/अरावली पर्वतमाला की स्थिति
- मृदा की संरचना
राजस्थान में कम वर्षा के कारण
- अरावली पर्वतमाला का अरब सागरीय मानसून के समानांतर स्थित होना।
- बंगाल की खाड़ी का मानसून राजस्थान तक आते-आते शुष्क हो जाता है।
- ताप की अधिकता के कारण आर्द्रता का वाष्पीकरण हो जाता है।
जलवायु के आधार पर राजस्थान की ऋतुएँ
जलवायु के आधार पर राजस्थान में मुख्यत: तीन प्रकार की ऋतुएं पायी जाती है। जिनके नाम निम्न प्रकार है:-
- ग्रीष्म ऋतु - मध्य मार्च से मध्य जून तक।
- शीत ऋतु - नवम्बर से फरवरी तक।
- वर्षा ऋतु - मध्य जून से मध्य सितम्बर तक।
ग्रीष्म ऋतु (मध्य मार्च से मध्य जून तक)
- ग्रीष्म ऋतु में जून महीने में सर्वाधिक तापमान होता हैं,क्योंकि जून महीनें में सूर्य की किरण कर्क रेखा पर लम्बवत पड़ती हैं।
- ग्रीष्म ऋतु में सर्वाधिक तापमान वाला जिला - चुरू जिला।
- राजस्थान में सर्वाधिक वार्षिक तापान्तर वाला जिला - चुरू जिला।
- राजस्थान में सर्वाधिक दैनिक तापान्तर वाला जिला - जैसलमेर जिला।
- ग्रीष्म ऋतु में सबसे कम तापमान वाला स्थान - माउण्ट आबू (सिरोही) हैं, क्योंकि यह राजस्थान का सर्वाधिक उँचाई पर स्थित स्थान हैं।
- ग्रीष्म ऋतु में सर्वाधिक शुष्क महींना - अप्रैल महीना।
- ग्रीष्म ऋतु में सर्वाधिक शुष्क जिला - बीकानेर जिला।
- ग्रीष्म ऋतु में सर्वाधिक शुष्क स्थान - फलौदी (जोधपुर) ।
- ग्रीष्म ऋतु में पश्चिमी रेतीले मैदान में तापमान उच्च होने के कारण न्यून वायूदाब का क्षेत्र बन जाता हैं, इसलिए पश्चिमी रेतीले मैदान में सर्वाधिक ऑंधिया चलती हैं। पवनें हमेंशा उच्च वायूदाब क्षेत्र से निम्न वायूदाब क्षेत्र की ओर चलती हैं। किसी स्थान में वायूदाब में अचानक कमीें आने पर वहा ऑंधी तूफान चलनें की संभावना होती हैं। जबकि वायूदाब अधिक होने मौसम सामान्य बना रहता हैं।
- राजस्थान में सर्वाधिक ऑंधिया गंगानगर जिले में चलती हैं।
- राजस्थान में सबसे कम आंधियां झालावाड जिले में चलती है।
- ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा (80 सेमी. से 100 सेमी. वार्षिक) दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग में होती है।
- ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान के पश्चिमी भाग में औसतन वर्षा 20 सेमी. होती है।
- राजस्थान के पूर्वी मैदानी भाग में वर्षा का सामान्य औसत 50 से 75 सेमी. वार्षिक होता है।
शीत ऋतु (नवम्बर से फरवरी तक)
- शीत ऋतु में सबसे कम तापमान वाला महीना जनवरी होता है।
- शीत ऋतु में सबसे कम तापमान वाला जिला - चुरू।
- शीत ऋतु में सबसे कम तापमान वाला स्थान - माउण्ट आबू।
- मावठ - शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभो/भूमध्य सागरीय चक्रवातों से होने वाली वर्षा को मावठ कहते है।
- शीत ऋतु रबी की फसल के लिए लाभदायक है।
वर्षा ऋतु (मध्य जून से मध्य सितम्बर तक)
- दोगड़ा – राजस्थान में होने वाली मानसून पूर्व की वर्षा को दोगड़ा कहा जाता है।
- राजस्थान में मानसून का आगमन जून माह के मध्य से होता हैं।
- मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसिम शब्द से हुई हैं।
- मानसूनी पवनों का सर्वप्रथम उल्लेख अलमसूदी ने किया था। भारत में सर्वाधिक वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों से होती हैं और राजस्थान में भी सर्वाधिक वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों से होती है।
- सामान्यतया जून के अंतिम सप्ताह तक मानसून राजस्थान में पहुच जाता है। बंगाल की खाड़ी व अरब सागरीय से उत्पन्न मानसून से राजस्थान में वर्षा होती है।
- वर्ष भर की वर्षा का 90 प्रतिशत भाग जुलाई-अगस्त माह में प्राप्त होता है।
- राजस्थान में अरबसागरीय मानसून के मार्ग में अवरोध नही होने के कारण ये अधिक वर्षा किये बिना राजस्थान से गुजर जाते है।
- बंगाल की खाड़ी से उत्पन्न मानसून देशभर में वर्षा करते है। यहाँ तक पहुचते पहुचते काफी शुष्क हो जाती है जिस कारण राजस्थान का पश्चिमी भाग वर्षा से वंचित रह जाता है। किन्तु अरावली पर्वतमाला के दक्षिणी-पूर्वी भाग में वार्षिक वर्षा का औसत 100 सेंटीमीटर से अधिक रहता है। पश्चिमी राजस्थान में वार्षिक वर्षा का औसत 25 सेंटीमीटर, दक्षिणी-पूर्वी भाग में वार्षिक वर्षा का औसत 75 से 100 सेंटीमीटर तथा शेष उत्तरी-पूर्वी राजस्थान में वार्षिक वर्षा का औसत 50 से 70 सेंटीमीटर के बीच रहता है।
- दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम व पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है एवं वर्षा में अनिश्चितता बढ़ती है।
राजस्थान में जलवायु की शब्दावली
- भभूल्या - भभूल्या का शाब्दिक अर्थ है - वायु का भंवर। मरुस्थल में निम्न वायुदाब के केंद्र के कारण स्थानीय स्तर पर बनने वाले वायु के भवंरो को स्थानीय भाषा में भभूल्या कहा जाता है।
- पुरवइया - पुरवइया का शाब्दिक अर्थ होता है - पूर्व दिशा की ओर चलनेवाली पवने। राजस्थान में ग्रीष्मकाल के दौरान पूर्व दिशा से आने वाले बंगाल की खाड़ी के मानसून को पुरवइया पवन कहा जाता है।
- आथूणी- शाम के समय चलने वाली पवने को स्थानिय भाषा मे आथणी कहा जाता है।
- सिली - सिली का शाब्दिक अर्थ होता है - ठंडी पवने। राजस्थान में पौष महीने में चलने वाली ठंडी पवनों को स्थानीय भाषा में सिली कहते है।
- लू - मरुस्थलीय भाग में चलने वाली शुष्क एवं अति गर्म हवाएं 'लू' कहलाती है।
- टांका - वर्षा जल संचयन के लिए घरों एवं दुर्गों में बनाये गए जलकुंड 'टांका' कहलाते है।
- पाला पड़ना - शीत पवनों के चलने से राजस्थान में रात्रि का तापमान हिमांक बिंदु तक चले जाने से पानी जम जाता है, जिससे फसलें नष्ट हो जाती है, इसे ही पाला पड़ना कहते है।
- जोहड़ या नाडा - शेखावाटी क्षेत्र में कच्चे एवं पक्के कुओं को जोहड़ या नाडा कहते है।
- रेगिस्तान मार्च - जब रेगिस्तान का किन्हीं कारणों से प्रसार होता है, तो उसे रेगिस्तान मार्च कहते है।
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