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आमेर के कच्छवाहा वंश का इतिहास - Amer Ke Kachwaha Vansh Ka Itihas in Hindi

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आमेर के कच्छवाहा वंश का इतिहास - Amer Ke Kachwaha Vansh Ka Itihas in Hindi
आमेर के कच्छवाहा वंश का इतिहास

आमेर का कछवाहा वंश

आमेर का कछवाहा वंश - आमेर के कछवाहा वंश की कुलदेवी 'जमुवाय माता' थी। यह रामचन्द्र के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशज थे, जिनका राजध्वज "पचरंगी ध्वजा" (नीला, पीला, लाल, हरा और सफेद) थी तथा इनका राजवाक्य यतो धर्म स्तुतो जयः' था। आमेर के कदमी महल' में कछवाहा शासकों का राज्याभिषेक हुआ करता था।

दुल्हेराय/तेजकरण - 

  • दुल्हेराय के पिता सोढासिंह ग्वालियर नरवर के शासक थे।
  • दुल्हेराय ने 1137 ई० में मांच (जयपुर) तथा रामगढ़ के मीणाओं को पराजित किया था।
  • दुल्हेराय ने दौसा के बड़गुजरों को हराकर दौसा में कछवाहा वंश की नींव रखी।
  • दुल्हेराय को कछवाहा राजवंश का संस्थापक माना जाता है।
  • दौसा को अपने साम्राज्य की प्रारम्भिक राजधानी बनाई।
  • दुल्हेराय ने रामगढ़ में कुल देवी जमुवाय माता के मन्दिर का निर्माण करवाया था।

कोकिल देव - 

  • कोकिल देव ने 1207 ई० में आमेर के मीणाओं को पराजित कर आमेर को अपनी राजधानी बनाई।

पृथ्वीराज कछवाहा -

  • पृथ्वीराज कछवाहा खानवा के युद्ध में साँगा की तरफ से लड़ते हुए मारा गया।
  • पृथ्वीराज कछवाहा ने अपना राज्य अपने 12 पुत्रों में बारह भागों में विभाजित कर उनमें बांट दिया, इसलिए आमेर रियासत 12 कोटड़ी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
  • पृथ्वीराज गलता के रामानुज सम्प्रदाय के संत कृष्णदास पयहारी के अनुयायी थे।

रतनसिंह कछवाहा - 

  • यह राजपूताने का पहला शासक था, जिसने अफगान शासक शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार की।

भारमल/बिहारी मल (1547-1573 ईस्वी) -

  • भारमल को अकबर ने 'अमीर-उल-उमरा' की उपाधि दी, यह राजस्थान का प्रथम राजपूत शासक था जिसने स्वेच्छा से मुगल सम्राट अकबर की 1562 ई. में अधीनता स्वीकार कर उसके साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये। (मारवाड़ का पहला शासक जिसने स्वेच्छा से मुगलों की अधीनता स्वीकार ली)
  • भारमल ने अकबर की अजमेर यात्रा के दौरान चकताई खाँ की मदद से 6 जनवरी, 1562 ई. में साँभर में अपनी पुत्री जोधाबाई/हरखाबाई कच्छवाहा राजकुमारी का विवाह अकबर से कर दिया (प्रथम मुग़ल-राजपूत विवाह), जिनसे सलीम/जहाँगीर पैदा हुआ। बाद में हरखाबाई बेगम मरियम-उज-जमानी के नाम से जानी जाने लगी।
  • इसके बाद भारमल ने अपने पुत्र भगवंतदास तथा पौत्र मानसिंह को अकबर की सेवा में भेज दिया।
  • भारमल की सहायता से अकबर ने 1570 ई० में नागौर दरबार लगाया।

भगवंतदास (1573-1589 ईस्वी) - 

  • अकबर ने राजपूतों में पहली बार भगवंत दास को 5000 की मनसबदारी प्रदान की गयी।
  • भगवंतदास ने अपनी पुत्री मानबाई का विवाह 13 फरवरी, 1585 ई. शाहजादा सलीम/जहाँगीर से कर दिया, जिनसे खुसरो पैदा हुआ।
  • अकबर के द्वारा महाराणा प्रताप को समझने के लिए भेजे गए चार शिष्टमंडल में तीसरे शिष्टमंडल में भगवंतदास को भेजा था, जो असफल रहा था।
  • भगवंतदास के कहने पर दादूदयाल ने फतेहपुर सिकरी में अकबर से मुलाकात की थी।
  • भगवंत दास की मृत्यु लाहौर में हुई।

मानसिंह प्रथम (1589-1614 ईस्वी) -

  • मानसिंह प्रथम का जन्म मौजमाबाद (साँभर) में 21 दिसम्बर, 1550 ई० में हुआ।
  • मानसिंह प्रथम 12 वर्ष की अल्पायु में अकबर की सेवा में चले गये।
  • मानसिंह प्रथम अकबर के नवरत्नों में से एक थे।
  • मानसिंह प्रथम का राज्याभिषेक प्रथम बार 1589 को पटना में जबकि दूसरी बार 1590 में आमेर में हुआ।
  • अकबर ने मानसिंह को 'फर्जन्द' की उपाधि दी।
  • मानसिंह को मुगल दरबार में अकबर द्वारा सर्वाधिक सात हजार की मनसबदारी दी गई।
  • हल्दीघाटी युद्ध में मानसिंह प्रथम अकबर के प्रधान सेनापति थे।
  • अहमदनगर अभियान -  मानसिंह की अहमद नगर अभियान के तहत एलिचपुर (बरार महाराष्ट्र) में मृत्यु हो गई।
  • मानसिंह ने अकबर व जहाँगीर दोनो मुगल बादशाहों के साथ कार्य किया।
  • मानिसंह ने  बंगाल में अकबर नगर, बिहार में मानपुर नगर, आमेर के दुर्ग में शिलादेवी (आमेर के कच्छवाहा वंश की आराध्य देवी), जगत शिरोमणि मन्दिर (रानी कनकावती के पुत्र जगतसिंह की याद में) तथा वृन्दावन में गोविन्द देव जी का मन्दिर बनवाया।
  • आमेर के महलों के निर्माण कार्य मानसिंह द्वारा करवाया गया।
  • मानसिंह के दरबारी विद्वान - जगन्नाथ (मानसिंह कीर्ति मुक्तावलि की रचना) तथा मुरारीदास (मान प्रकाश की रचना) आदि।
  • मानसिंह के सैन्य अभियान - 1569 में रणथम्भौर अभियान (सुरजन हाड़ा), 1572 में गुजरात अभियान (शेर खा के विरुद्ध), 1573 में डूंगरपुर अभियान (आसफ खा के विरुद्ध), 1576 में हल्दीघाटी (महाराणा प्रताप के विरुद्ध), 1585 में काबुल विजय अभियान (मिर्जा हाकिम का के विरुद्ध), 1587 में बिहार अभियान (पूरनमल के विरुद्ध), 1590 में उड़ीसा अभियान (नासिर खा के विरुद्ध), 1592 में बंगाल अभियान (केदार के विरुद्ध) आदि।
  • मानसिंह प्रथम ने बिहार में मानपुर कस्बा बसाया था।
  • मानसिंह प्रथम ने बंगाल में अकबरपुर कस्बा बसाया था।
  • मीनाकारी कला राजस्थान में सर्वप्रथम मानसिंह प्रथम द्वारा लाई गई।

मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम (1621-1667 ईस्वी) - 

  • मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम मानसिंह प्रथम का पुत्र था।
  • मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने तीन मुगल बादशाहों (जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगजेब) के साथ सर्वाधिक अवधि तक कार्य किया।
  • शाहजहाँ ने इसको 'मिर्जा राजा' की उपाधि दी।
  • पुरंदर की संधि - मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने 11 जून, 1665 ई० में शिवाजी के पुरन्दर दुर्ग में शिवाजी के साथ 'पुरन्दर की संधि' की।
  • मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने आमेर में केसर क्यारी, दिवान-ए-आम, दीवान-ए-खास एवं जयगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था।
  • औरंगजेब ने 2 जुलाई, 1668 को बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) के निकट जहर देकर जयसिंह की हत्या करवा दी।
  • मिर्जा राजा जयसिंह का दरबारी कवि बिहारी था। जिसने 'बिहारी सतसई' नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ के प्रत्येक दोहे की रचना पर जयसिंह ने इसे एक स्वर्ण मुहर दान में दी।

सवाई जयसिंह द्वितीय (1700-1743 ईस्वी) -

  • सवाई जयसिंह द्वितीय को औरंगजेब ने इन्हें 'सवाई' की उपाधि दी।
  • सवाई जयसिंह को 'जयपुर का चाणक्य' भी कहते हैं।
  • मुगल सम्राटों द्वारा सवाई जयसिंह को तीन बार मालवा का सूबेदार नियुक्त किया गया।
  • सवाई जयसिंह ने पांच सौर वैद्यशालाएं (जंतर-मंतर) बनाई जो निम्न है - दिल्ली (सबसे प्राचीन 1724 ई. में), जयपुर (सबसे बड़ी 1734 ई. में बनी जो 2010 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में सम्मिलित), बनारस, उज्जैन तथा  मथुरा में।
  • सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1733 ई. में 'जिज़ मुहम्मद शाही' नामक पुस्तक की रचना की, जो नक्षत्रों के ज्ञान से संबंधित है
  • 18 नवम्बर, 1727 ई० में सवाई जयसिंह ने  जयनगर (वर्तमान में जयपुर) की नींव रखी, जो 1729 ई. में पूरा हुआ।
  • जयपुर शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य (बंगाली ब्राह्मण) थे।
  • सवाई जयसिंह अंतिम हिन्दूराजा थे, जिन्होनें 1740 में 'अश्वमेघ यज्ञ' सिटी पैलेस के चन्द्र महल में करवाया। इस यज्ञ के राजपुरोहित पुण्डरीक रत्नाकर थे।
  • सवाई जयसिंह ने जलमहल, जयबाण तोप, नाहरगढ़ दुर्ग, गोविंददेवजी का मंदिर तथा चंद्रमहल (सिटी पैलेस) का निर्माण करवाया।
  • जयपुर में कनक वृन्दावन का निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया।
  • 1736 में जयसिंह की बाजीराव से भेंट भंभोला स्थान पर हुई।
  • सवाई जयसिंह द्वितीय ने विधवा पुर्नविवाह हेतु नियम बनाने का प्रयत्न किया।
  • जयसिंह द्वितीय के शासनकाल में सेना की भर्ती और वेतन के लिए बख्शी अधिकारी उत्तरदायी था।
  • सवाई जयसिंह द्वितीय ने ग्रहो पर जयसिंह कारिता तथा ज्योतिष पर जीज मुहम्मद शाही ग्रंथों की रचना की।

सवाई ईश्वरीसिंह (1743-1750 ईस्वी) -

  • ईश्वरी सिंह व माधोसिंह के मध्य उत्तराधिकारी विवाद को लेकर राजमहल (टोंक) में 1 मार्च, 1747 ई० में युद्ध हुआ, जिसमे ईश्वरी सिंह विजयी हुआ था। इस जीत की खुशी में जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में सात मंजिला ईसरलाट (वर्तमान में सरगासूली) बनवाई, जहाँ से उसने 1750 में मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर के भय से कूदकर आत्महत्या कर ली।

सवाई माधोसिंह प्रथम (1750-1768 ईस्वी) -

  • सवाई माधोसिंह प्रथम ने सवाई माधोपुर नगर (1763 में), मोती डूंगरी के महल, शील की डूंगरी (चाकसू) में शीतला माता का मन्दिर बनवाया।
  • कोटा के महाराजा शत्रुसाल ने जयपुर पर आक्रमण कर नवम्बर 1761 ईस्वी में भटवाड़ा के युद्ध में जयपुर की सेना को हराया था।

सवाई प्रतापसिंह (1778-1803 ईस्वी) - 

  • सवाई प्रतापसिंह ने 1799 ई. में जयपुर में हवामहल का निर्माण करवाया।
  • सवाई प्रतापसिंह के दरबार में 'बाईसी भरमार' (22 विद्वानों का
  • दल अर्थात् 22 कवि, 22 संगीतज्ञ, 22 ज्योतिषी एवं 22 विषय विशेषज्ञ के रूप में )था, जिसे 'गन्धर्व बाइसी' कहा जाता था। इसलिए जयपुर के इतिहास में सवाई प्रतापसिंह को कला, संगीत एवं साहित्य का महान् आश्रयदाता माना जाता है।
  • सवाई प्रतापसिंह ने जयपुर में एक संगीत सम्मेलन का आयोजन करवाकर 'राधागोविंद संगीतसार' नामक ग्रंथ की रचना की गई। इस सम्मेलन के अध्यक्ष देवऋषि ब्रजपाल भट्ट थे।
  • सवाई प्रतापसिंह ने जोधपुर नरेश विजयसिंह के सहयोग से तुंगा के मैदान में 1787 में महादजी सिंधिया को हराया।

जगतसिंह द्वितीय -

  • जगतसिंह द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ 2 अप्रैल, 1818 ई. में संधि की और राज्य की सुरक्षा का भर कम्पनी पर डाल दिया।
  • जगतसिंह को 'जयपुर का बदनाम शासक' प्रेमिका रसकपूर नामक वैश्या के कारण जाना जाता है।

रामसिंह द्वितीय (1835-1880 ईस्वी) -

  • रामसिंह द्वितीय ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों की तन-मन-धन से सहायता की। उसके बदले में इन्हें 'सितार-ए-हिन्द' की उपाधि तथा कोटपुतली परगना दिया गया।
  • रामसिंह द्वितीय को 'जयपुर का समाज सुधारक शासक' कहते हैं।
  • रामसिंह द्वितीय ने मदरसा-ए-हुनरी, महाराजा कॉलेज, संस्कृत कॉलेज, रामप्रकाश थियेटर (राजस्थान का सबसे प्राचीन) का निर्माण करवाया था।
  • जयपुर शहर को 1876 ई. में प्रिंस अल्बर्ट के आगमन पर रामसिंह द्वितीय ने जयपुर शहर को गुलाबी रंग से पुतवाया, इसलिए जयपुर शहर को गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) कहते है। 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स प्रिंस अल्बर्ट की जयपुर यात्रा की याद में जयपुर में अल्बर्ट हॉल (म्यूजियम) बनवाया, इस अल्बर्ट हॉल  म्यूजियम का शिलान्यास प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड सप्तम 'प्रिंस ऑफ वेल्स' ने किया। इसके वास्तुकार ‘सर स्टीवन' थे। 

माधोसिंह द्वितीय (1880-1922 ईस्वी) -

  • माधोसिंह द्वितीय 1902 ईस्वी में प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह में भाग लेने इंग्लैण्ड गये।
  • माधोसिंह द्वितीय ने पण्डित मदनमोहन मालवीय को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय हेतु पाँच लाख रुपए दान में दिए।

महाराजा मानसिंह द्वितीय -

  • राजस्थान के प्रथम उच्च न्यायालय का उद्घाटन महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय के द्वारा किया गया था। 
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