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राजस्थान की प्रमुख भाषा एवं बोलियां - Languages and Dialects of Rajasthan in Hindi

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राजस्थान की भाषा एवं बोलियां : आज की इस पोस्ट में राजस्थान की भाषा एवं बोलियां पर एक विस्तृत लेख लिखा गया है। इसमें आप सभी के अक्सर पूछे जाने वाले सवाल राजस्थान की भाषा क्या है, राजस्थानी भाषा की विशेषताएं, राजस्थान में कितनी भाषाएं बोली जाती है, राजस्थान की बोलियां कितनी है, राजस्थान की बोलियां का साहित्यिक परिचय, राजस्थान की बोलियां एवं भाषा Trick PDF Download आदि से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य शामिल किये गए है। आप सभी इसको पूरा जरूर पढ़ें:-
राजसथान की प्रमुख भाषा एवं बोलियां - Languages and Dialects of Rajasthan in Hindi
राजस्थान की प्रमुख भाषा एवं बोलियां

राजस्थान की भाषा एवं बोलियां

राजस्थानी भाषा : राजस्थान की मातृभाषा/मूलभाषा राजस्थानी है, जबकि राजस्थान की राजभाषा हिन्दी है। राजस्थानी भाषा दिवस 21 फरवरी को मनाया जाता है जबकि 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। राजस्थानी भाषा की लिपि 'देवनागरी महाजनी' हैं। राजस्थानी भाषा की उत्पति शौरसेनी के गुर्जर अपभ्रंश से मानी जाती है तथा इसकी उत्पत्ति डॉ.ग्रियर्सन के अनुसार नागर अपभ्रंश से हुई हैं। राजस्थान में सर्वाधिक मारवाड़ी भाषा बोली जाती है। उद्योतन सूरी द्वारा लिखित कुवलयमाला में वर्णित 18 देशी भाषाओं में मरुभाषा को भी शामिल किया गया है। भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाओँ का उल्लेख है, जिसमे राजस्थानी भाषा शामिल नहीं है। कवि कुशललाभ के ग्रंथ 'पिंगल शिरोमणि' तथा अबुल फजल ने 'आइने अकबरी' में मारवाड़ी शब्द का प्रयोग किया गया है। डॉ. टैसीटरी के अनुसार 12वीं सदी के लगभग राजस्थानी भाषा अपने अस्तित्व में आ चुकी थी। राजस्थान की बोलियों पर पहली बार वैज्ञानिक दृष्टिपात व राजस्थान की भाषा के लिए राजस्थानी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1912 में जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक 'लिंग्वटिक सर्वे ऑफ इंडिया' में किया। राजस्थानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ "वज्रसेन सुरी" द्वारा रचित "भरतेश्वर बाहुबलि घोर" है, तो उद्योतन सूरी के आठवीं शताब्दी के कुवलयमाला' नामक ग्रंथ में भारत की 18 देशी भाषाओं में मारवाड़ की भाषा को 'मरु वाणी' के नाम से पुकारा है। राजस्थानी साहित्य का स्वर्णकाल सन् 1700-1900 ई. तक माना जाता है। 16 वीं सदी के बाद राजस्थानी भाषा का विकास एक स्वतंत्र भाषा के रूप में होने लगा।  क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थानी भाषा की सबसे बड़ी बोली मारवाड़ी है जबकि सर्वाधिक लोग ढूंढाड़ी बोली बोलते हैं। राजस्थानी भाषा पर सर्वाधिक प्रभाव गुजराती एवं ब्रज भाषा का पड़ा है। राजस्थान में प्रथम भाषा सर्वेक्षक जॉर्ज मैकलिस्टर' को कहा जाता है। रांगड़ी बोली 'मारवाड़ी एवं मालवी बोली का मिश्रण' जो दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में बोली जाती है।
जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी भाषा की पांच उपशाखाएँ बताई, जो निम्न प्रकार है:-  
  • पश्चिमी राजस्थानी ( मारवाड़ी, मेवाड़ी, शेखावाटी एवं बागड़ी)
  • उत्तरी-पूर्वी राजस्थानी (मेवाती एवं अहीरवाटी)
  • मध्य-पूर्वी राजस्थानी (ढूंढाड़ी एवं हाड़ौती)
  • दक्षिणी-पूर्वी राजस्थानी (मालवी एवं नीमाड़ी)
  • दक्षिणी राजस्थानी।
डॉ. एल. टेस्सीटोरी ने राजस्थानी भाषा की बोलियों को दो भागों में बांटा है, जो निम्न प्रकार है:- 
  • पश्चिमी राजस्थानी - शेखावाटी, थली, जोधपुरी, बीकानेर, ढटकी, किशनगढ़ी, खैराडी, सिरोही की गौड़वाड़ी एवं देवड़ावाटी।
  • पूर्वी राजस्थानी (ढूंढाड़ी) - तोरावाटी, कठैड़ी, चौरासी, खड़ी जयपुरी, नगरचौल, हाड़ौती, राजावाटी, अजमेरी। 

मारवाड़ी बोली -

  • यह राजस्थानी भाषा का मानक रूप हैं, जिसे राजस्थान की 'मरुभाषा' कहते हैं।
  • अधिकांश साहित्य मारवाड़ी भाषा में लिखा हुआ हैं।
  • मारवाड़ी भाषा सर्वाधिक क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा हैं, जिसे पश्चिमी राजस्थान की प्रधान बोली कहते हैं।
  • मारवाड़ी का साहित्यिक रूप डिंगल कहलाता है।
  • मारवाड़ी बोली के क्षेत्र - जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, शेखावाटी, पाली, सिरोही, जालौर, नागौर, बाड़मेर आदि।
  • मारवाड़ी बोली की प्रमुख उपबोलियाँ - गोड़वाड़ी, ढूंढाड़ी, देवड़ावाटी/गौड़वाड़ी, शेखावाटी।

मेवाती बोली -

  • मेवाती बोली वाले क्षेत्र - अलवर, भरतपुर, धौलपुर एवं करौली जिलों में मेवाती बोली जाती है।
  • पश्चिमी हिंदी एवं राजस्थानी के बीच समन्वय कार्य मेवाती बोली करती है।
  • मेवाती की उपबोली - अहीरवाटी(राठी)

ढूंढाड़ी बोली - 

  • यह बोली पूर्वी राजस्थान में सर्वाधिक बोली जाती है।
  • संत दादू ने अपने साहित्यिक रचनाओं में ढूंढाड़ी बोली का प्रयोग किया है।
  • ढूंढाड़ी बोली की उपबोलियाँ - चौरासी (जयपुर एवं टोंक), तोरावाटी (नीम का थाना-सीकर एवं खेतड़ी - झुंझुनू), काठेड़ा (जयपुर एवं टोंक), नागरचाल (सवाईमाधोपुर), राजावाटी (पूर्वी जयपुर), खड़ी जयपुरी, अहीरवाटी, मेवाती, मालवी, रांगड़ी, हाड़ौती, अजमेरी, किशनगढ़ी। 

हाड़ौती बोली - 

  • यह बोली मुखतय: हाड़ा राजपूतों द्वारा शासित कोटा, बारां, बूंदी तथा झालावाड़ के क्षेत्रों में बोली जाता है।
  • हाड़ौती का भाषा के अर्थ में सर्वप्रथम प्रयोग केलॉग की हिंदी ग्रामर सन 1875 ईस्वी में किया गया।
  • वर्तनी की दृष्टि से यह बोली राजस्थान की सभी बोलियों में सबसे कठिन समझी जाता है।
  • कवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने अपनी रचनाएं इस बोली में रची थी।

राजस्थानी की अन्य बोलियां - 

  • जगरौती बोली - यह करौली जिले में बोली जाती है।
  • ढाटी बोली - यह बाड़मेर जिले में बोली जाती है।
  • नागरचाल बोली - यह टोंक जिले में बोली जाती है।
  • धावड़ी बोली - यह उदयपुर जिले में बोली जाती है।
  • गोड़वाड़ी बोली - यह मारवाड़ी भाषा की उपबोली है, यह गौड़वाड़ क्षेत्र (जालौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर) में बोली जाती है।
  • देवड़ावाटी बोली - यह सिरोही जिले में बोली जाती है।
  • मेवाड़ी बोली - यह बोली मेवाड़ क्षेत्र (उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा) में बोली जाती है।
  • वागड़ी/बागड़ी बोली - यह वागड़/बागड़ क्षेत्र (डूंगरपुर, बांसवाड़ा) में बोली जाता है।
  • किशनगढ़ी बोली - यह अजमेर में बोली जाती है।
  • हाड़ौती - यह हाड़ौती क्षेत्र (कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़) में बोली जाती है।
  • मालखेराड़/खेराड़ी - यह बूंदी, टोंक, भीलवाड़ा जिलों में बोली जाती है।
  • ब्रज बोली - यह बोली भरतपुर एवं धौलपुर में बोली जाती है।

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