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मारवाड़ के राठौड़ वंश का इतिहास - Marwar Ke Rathore Vansh Ka Itihas in Hindi

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मारवाड़ के राठौड़ वंश का इतिहास - Marwar Ke Rathore Vansh` Ka Itihas in Hindi
मारवाड़ के राठौड़ वंश का इतिहास

मारवाड़ के राठौड़ वंश

मारवाड़ के राठौड़ : राजस्थान की अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी भाग को 'मारवाड़' कहते है। मारवाड़ की संकटकालीन राजधानी 'सिवाना दुर्ग' थी। मारवाड़ के राठौड़ों की कुलदेवी नागणेची माता थी।

रावसीहा -

  • रावसीहा ने मारवाड़ के राठौड़ वंश की स्थापना 13वीं शताब्दी में की इसलिए राव सीहा को  'मारवाड़ के राठौड़ों का संस्थापक/मूल पुरुष/आदि पुरुष' कहते हैं।
  • राव सीहा की राजधानी - खेड़ा (बालोतरा)
  • राव सीहा 1273 ईस्वी में पाली के मिठू गांव में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त हुए।

राव धुहड़ -

  • इन्होने बाड़मेर के नागाणा गांव में कुलदेवी नागणेची माता का मंदिर बनवाया था।
  • लोकदेवता पाबूजी इनके छोटे भाई राव धांधल के पुत्र थे।

राव मल्लिनाथ -

  • राव मल्लीनाथजी मारवाड़ के क्षेत्र में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते है।
  • इनकी राजधानी नाकोड़ा (बाड़मेर) थी।

राव चूड़ा -

  • राव चूड़ा वीरमदेव का पुत्र था।
  • चूड़ा मारवाड़ के राठौड़ो में प्रथम प्रतापी शासक था, जिसने प्रतिहारों की इन्दा शाखा के राजा की पुत्री किशोर कुँवरी से विवाह किया, जिसके बदले में उसे मण्डोर दुर्ग दहेज में मिला।
  • राव चूड़ा ने मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया।
  • राव चूड़ा ने रानी किशोर कुंवरी के प्रभाव से अपने छोटे पुत्र कान्हा को उत्तराधिकारी बनाया।

रणमल राठौड़ -

  • रणमल राव चूड़ा की सोनगरी रानी चाँद कँवर का बड़ा पुत्र था, जब इसे राजा नहीं बनाया गया तो वह मेवाड़ के राणा लाखा की शरण में चला गया, जहाँ उसे 'धणला' की जागीर प्राप्त हुई ।
  • रणमल राठौड़ ने अपनी बहिन हंसाबाई का विवाह सशर्त (हंसाबाई का होने वाला पुत्र मेवाड़ का शासक बने) राणा लाखा से कर दिया। हंसाबाई ने मोकल को जन्म दिया।
  • रणमल राठौड़ अपने भांजा मेवाड़ के मोकल की सहायता से कान्हा को पराजित कर मारवाड़ का राजा बन गया।

राव जोधा (1438-1489 ईस्वी) -

  • राव जोड़ के पिता रणमल व माता कोडमदे थी। 
  • राव जोधा ने 13 मई, 1459 ई० में करणीमाता के आशीर्वाद से जोधपुर नगर बसाया।
  • राव जोधा की रानी जसमादे ने राणीसर तालाब का निर्माण करवाया था।
  • राव जोधा ने जोधपुर में 1459 ईस्वी को चिड़ियाटूंक पहाड़ी पर मेहरानगढ़ दुर्ग (गढ़ चितामणि/मयूर ध्वजगढ़) बनवाया।
  • राव जोधा ने जोधपुर को अपनी राजधानी बनाया।
  • राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग में चामुंडा माता मंदिर एवं नागणेची माता का मंदिर बनवाया।
  • मण्डोर के सिंहासन के लिए राव जोधा ने राणा कुंभा के साथ भयंकर लड़ाई की थी।

राव गांगा (1515-1531 ईस्वी) - 

  • राव गंगा का विवाह मेवाड़ के  महाराणा सांगा की पुत्री पद्मावती से हुआ था।
  • राव गंगा ने 1527 के खानवा युद्ध में अपने पुत्र मालदेव के साथ साँगा की सहायता की।
  • राव गांगा के पुत्र मालदेव ने इनको महल की खिड़की से गिराकर इनकी हत्या कर दी इसलिए मालदेव 'मारवाड़ का पितृहन्ता' कहा जाता है।

राव मालदेव (1531-1562 ईस्वी) -

  • राव मालदेव का राज्याभिषेक सोजत (पाली) में हुआ।
  • राव मालदेव को फारसी इतिहासकारों ने 'हशमत वाला शासक' (शक्तिशाली शासक) कहा था।
  • फरिश्ता व बदायूनी खाँ ने राव मालदेव को 'भारत का महान पुरुषार्थी राजकुमार' कहा है।
  • मालदेव मारवाड़ का सबसे योग्य व प्रतापी शासक था, जिसे 52 युद्धों का विजेता और 18 परगनों के रूप में प्रतिष्ठित माना गया।
  • पाहोबा का युद्ध - राव मालदेव (सेनापति जेता एवं कुम्पा) ने 1541 में पाहोपा साहेबा के युद्ध में बीकानेर के राव जैतसी को हराया।
  • सुमेलगिरी युद्ध - 5 जनवरी, 1544 ई. में जैतारण (पाली) के निकट गिरी-सुमेल/सुमेलगिरी के युद्ध में शेरशाह सूरी ने बड़ी कठिनाइयों से मालदेव की सेना की पराजित किया तब शेरशाह सूरी कहा कि 'एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता'। इस युद्ध में मालदेव के सेनापति जेता एवं कुम्पा मारे गए और मालदेव जोधपुर चले गए। बीकानेर के राव कल्याणमल ने गिरी-सुमेल के युद्ध में शेरशाह सूरी की सहायता की थी। 
  • राव मालदेव का विवाह जैसलमेर के शासक राव लूणकरण की पुत्री उमादे (रूठी रानी) के साथ हुआ।
  • मालदेव ने सोजत का दुर्ग (पाली), मालकोट का किला (मेड़ता नागौर), पोकरण का दुर्ग (जैसलमेर), शेरगढ़ दुर्ग (धौलपुर) का निर्माण करवाया।
  • राव मालदेव ने अपने पुत्र राव चन्द्रसेन को उत्तराधिकारी बनाया तो उनके पुत्र राम एवं उदयसिंह अकबर के दरबार में चले गए।

राव चन्द्रसेन (1562-1581 ईस्वी) -

  • राव चन्द्रसेन के उपनाम - मारवाड़ का प्रताप, प्रताप का अग्रगामी, भूला बिसरा राजा, विस्मृत नायक, प्रताप का पथ प्रदर्शक।
  • अकबर ने 3 नवम्बर, 1570 ई. को नागौर दरबार लगाया,  जिसमें राव चन्द्रसेन नागौर पहुँचकर बिना अकबर के अधीनता स्वीकार किये बिना बताये वापस जोधपुर पहुँचा। अकबर नाराज होकर हुसैन कुली खाँ को 1564 ईस्वी में जोधपुर पर आक्रमण करने के लिए भेजा। चन्द्रसेन जोधपुर से भागकर भद्राजूण (जालौर) चले गए। अकबर ने 1574 ईस्वी में जलाल खां के नेतृत्व में सेना भाद्राजून पर  आक्रमण के लिए भेजी तो चन्द्रसेन वहां से सिवाना चले गए। फिर अकबर ने 1576-77 में शाहबाज खा एवं रायसिंह के नेतृत्व में सेना सिवाना आक्रमण के लिए भेजी तो इस समय चन्द्रसेन सारण की पहाड़ी (सोजत, पाली) भागने में सफल हुआ। वहां पर 1581 ईस्वी में इनका देहांत हो गया। जहाँ इनकी समाधि बनी हुई है।
  • अकबर ने जोधपुर का प्रशासन 30 अक्टूबर, 1572 ई. को बीकानेर के रायसिंह को सौंपा।

मोटाराजा राव उदयसिंह (1583-1595 ईस्वी) -

  • राव उदयसिंह ने अपनी पुत्री मानबाई (भानमती/जगतगोसाई/मल्लिका-ए-जहाँ) की शादी 1587 ई. में जहाँगीर से की जिनसे खुर्रम (शाहजहाँ) पैदा हुआ।
  • उदयसिंह मारवाड़ का प्रथम शासक था, जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर उनसे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये।
  • मोटाराजा उदयसिंह के पुत्र किशनसिंह ने 1609 ईस्वी में किशनगढ़ शहर बसाया था।

जसवंत सिंह प्रथम (1638-1678 ईस्वी) -

  • जसवंत सिंह प्रथम का राज्याभिषेक आगरा में हुआ, उस समय इनका संरक्षक ठाकुर राजसिंह कूम्पावत था।
  • शाहजहाँ ने इनको  'महाराजा' की उपाधि प्रदान की।
  • इनकी रानी जसवंत दे ने जोधपुर में कल्याण सागर तालाब (रातानाडा तालाब) तथा राइका बाग़ का निर्माण करवाया था।
  • महाराजा जसवंत सिंह ने सिद्धांत बोध, आनंद विलास और भाषा भूषण पुस्तकों की रचना की थी। 
  • जसवंत सिंह प्रथम ने शाहजहाँ के उत्तराधिकारी के युद्ध में भाग लिया। 15 अप्रैल, 1658 ई. में धरमत का युद्ध (मध्य प्रदेश) में इन्होने दाराशिकोह का साथ दिया था, लेकिन औरंगजेब की विजय हुई थी।
  • औरंगजेब तथा दाराशिकोह के मध्य 1659 में दोराई का युद्ध (अजमेर) हुआ था, जिसमें जसवंत सिंह ने दाराशिकोह का साथ दिया परन्तु इसमें भी औरंगजेब जीता।
  • जसवन्त सिंह की अफगानिस्तान में जामरूद नामक स्थान पर 1678 में मृत्यु हो गई।
  • जसवंत सिंह प्रथम की मृत्यु होने पर औरंगजेब ने कहा 'आज कुफ्र (धर्म विरोधी) दरवाजा टूट गया' है।
  • इनके दरबारी कवि मुहणौत नैणसी ने नैणसी री ख्यात तथा मारवाड़ रा परगना री विगत नामक दो ग्रंथों की रचना की थी।

अजीतसिंह राठौड़ (1679-1724 ईस्वी) -

  • अजीत सिंह जसवंत सिंह प्रथम के पुत्र थे।
  • अजीतसिंह को औरंगजेब ने कैद कर दिया था, लेकिन दुर्गादास राठौड़ ने वाघेली महिला (गोरा) की मदद से अजीतसिंह को आजाद करवाकर कालिंदी (सिरोही) में जयदेव पुरोहित के घर ले गए, जहां पर इनकी सुरक्षा का जिम्मा मुकुंददास खींची ने लिया। यहां पर अजीतसिंह को असुरक्षित महसुस कर दुर्गादास राठौड़ अजीतसिंह को लेकर मेवाड़ चले गए, जहां पर इन्हें केलवा की जागीर प्रदान की गयी।
  • मारवाड़ के राठौड़ों ने दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में अजीत सिंह को राजा बनाने के लिए मुगलों के विरूद्ध एक लम्बा संघर्ष किया परन्तु अजीतसिंह ने राजा बनने के बाद दुर्गादास को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया।
  • अजीतसिंह की पुत्री इन्द्र कंवर का विवाह फर्रुखशियर के साथ किया। यह अंतिम मुग़ल-राजपूत विवाह था।
  • अजीतसिंह के दो पुत्र थे, जिनमें से छोटे पुत्र बख्तसिंह ने बड़े पुत्र अभयसिंह के कहने पर सोते हुए अजीतसिंह की 1724 ईस्वी में हत्या कर दी, इसलिए बख्तसिंह ‘मारवाड़ का दूसरा पितृहंता' कहलाता है।
  • इतिहासकार गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने मारवाड़ के राजा अजीतसिंह को ‘कान का कच्चा' कहा है।

अभयसिंह राठौड़  (1724-1749 ईस्वी) -

  • इनके शासन काल में जोधपुर  खेजड़ली गांव में 1730 ईस्वी में गिरधारीदास ने वृक्ष काटने का आदेश दिया था, जिसमे अमृतादेवी विश्नोई ने अपने पति रामोजी सहित कुल 363 लोगों ने वृक्षों की रक्षा हेतु अपना बलिदान दिया था। इसी के उपलक्ष में प्रति वर्ष खेजड़ली गांव (जोधपुर) में भाद्रपद शुक्ल दशमी (तेजादशमी) के दिन मेला लगता है। यह विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला है।

मानसिंह राठौड़ (1803-1843 ईस्वी) -

  • मानसिंह को 'सन्यासी राजा' भी कहा जाता है।
  • गोरखनाथ सम्प्रदाय के आयस देवनाथ ने भविष्यवाणी की थी कि मानसिंह शीघ्र ही जोधपुर के राजा बनेगे। मानसिंह ने राजा बनते ही देवनाथ को जोधपुर बुलाकर उन्हें अपना गुरु वहां पर इन्होनें नाथ सम्प्रदाय का महामन्दिर (नाथ सम्प्रदाय की मुख्य पीठ) बनवाया।
  • मानसिंह ने जोधपुर किले में 'मानपुस्तक प्रकाश' पुस्तकालय की स्थापना की।
  • इनके दरबारी कवि बाकीदास थे।
  • मानसिंह राठौड़ ने  6 जनवरी, 1818 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ सहायक संधि की।
  • मानसिंह राठौड़ व जगतसिंह द्वितीय के मध्य मेवाड़ के महाराजा भीमसिंह की राजमुमारी कृष्णा कुमारी के कारण गिंगोली का युद्ध हुआ।
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