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आज की इस पोस्ट में राजस्थान की चित्रकला शैली की मारवाड़ स्कुल 'Marwar Chitra Shaili' के अंतर्गत जोधपुर चित्रकला शैली Jodhpur Chitra Shaili, बीकानेर शैली Bikaner Chitra Shaili, किशनगढ़ शैली Kishangarh Chitra Shaili, अजमेर शैली Ajmer Chitra Shaili, नागौर शैली Nagaur Chitra Shaili तथा जैसलमेर शैली Jaisalmer Chitra Shaili का विस्तार से अध्ययन किया है। इसमें मैंने एक-एक बिंदु को लेकर अच्छी तरह से एक्सप्लेन करने की कोशिश की है। आप सभी इसको पूरा जरूर पढ़ें:-
मारवाड़ शैली/मारवाड़ स्कूल
मारवाड़ शैली/मारवाड़ स्कुल - मारवाड़ स्कूल के अंतर्गत मुख्य रूप से निम्न शैलियां आती है, जिनके नाम निम्नानुसार है:-
- जोधपुर चित्रकला शैली
- बीकानेर चित्रकला शैली
- किशनगढ़ चित्रकला शैली
- अजमेर चित्रकला शैली
- नागौर चित्रकला शैली
- जैसलमेर चित्रकला शैली
①. जोधपुर शैली
- जोधपुर शैली के प्रमुख राजा - महाराजा जसवंत सिंह, महाराजा मानसिंह, मालदेव (जोधपुर शैली का स्वर्ण काल - मालदेव का शासनकाल)
- जोधपुर शैली के प्रमुख चितेरे - नारायणदास, शिवदास, देवदास, अमरदास, बिशनदास, रतन जी भाटी, रामा, नाथा, छज्जू और सैफू आदि।
- जोधपुर शैली के प्रमुख चित्रित ग्रंथ एवं विषय - जोधपुर लघु चित्रकला को हाथ से तैयार किया गया है। इसमें ऊंट की पीठ पर ढोला और मारू जैसे प्रसिद्ध प्रेमियों के दृश्य, बिलावल रागिनी चित्र, सूरसागर व रसिकप्रिया पर आधारित चित्र, नाथ चरित्र, दुर्गा सप्तशती, ढोला मरवण री बात, पंचतंत्र, कामसूत्र, वेली किसन रुक्मणी आदि ग्रंथ प्रमुख रूप से चित्रित हुए हैं। कलाकार वीरजी द्वारा सन 1623 में चित्रित ग्रंथ 'रागमाला' सैट बहुत प्रसिद्ध चित्र है। लोक गाथाओं व प्रेम आख्यानों, धार्मिक व नाथ संप्रदाय की पारंपरिक जीवन शैली का चित्रण प्रधान विषय रहे हैं। इस शैली में मतिराम द्वारा रचित 19 वीं शताब्दी की हिंदी साहित्य रचना रसराज का चित्रण हेतु विषय के रूप में प्रयोग किया गया है।
- जोधपुर शैली के प्रमुख रंग - पीला रंग प्रमुखता से प्रयुक्त हुआ है।
- जोधपुर शैली में पुरुष आकृति एवं वेशभूषा - मुखमंडल शौर्य से ओतप्रोत, घनी दाढ़ी-मूछें, धनुष समान बड़ी आंखें, गठीला बदन एवं लंबा कद, मोटी ग्रीवा, सफेद गोल जामा, तुर्राकलंगी, अलंकृत व ऊंची पगड़ी, हाथ में ढाल तलवार, मोती की माला, ऊंट व घोड़े पर सवार पुरुष आदि।
- जोधपुर शैली में नारी आकृति व वेशभूषा - जोधपुर शैली में स्त्रियों के अंग प्रत्यंगों का अंकन गठीला, लंबे हाथ, काले घने लंबे लहराते बाल, बादाम सी आंखें, अंगुलियां लंबी व पतली, पतली कटि, विकसित नासापुट, मांसल चिबुक पर तिल के निशान, भौंहे कानों तक जाती। ठेठ राजस्थानी लहंगा, ओढ़नी और लाल फुंदने का प्रयोग, आभूषण में मोतियों का बाहुल्य आदि।
जोधपुर शैली की अन्य विशेषताएं:-
- विद्युत रेखाओं सहित गोलाकार घने बादल।
- आम के वृक्ष, रेत के टीले, ऊंट, घोड़े, कुत्ते, चिंकारा एवं छोटी-छोटी झाड़ियां आदि का चित्रण इस शैली की विशेषताएं हैं।
- जोधपुर शैली का स्वतंत्र रूप से प्रादुर्भाव राव मालदेव के समय हुआ।
- यह शैली नाथ संप्रदाय से संबंधित है।
②. बीकानेर शैली
- बीकानेर शैली के प्रमुख राजा - बीकानेर शैली का स्वर्ण काल महाराजा अनूप सिंह के शासनकाल को माना जाता है।
- बीकानेर शैली के प्रमुख चितेरे - अलीरजा, मुकुंद, रुकनुद्दीन, रामलाल, हसन, मुन्नालाल, उस्ता आशीर खां आदि।
- बीकानेर शैली के प्रमुख चित्रित ग्रंथ एवं विषय - इसमें रसिकप्रिया, रागरागिनी, महफिल तथा सामंती वैभव, कृष्णलीला शिकार, बारहमासा का चित्रण इस शैली के प्रमुख आधार रहे हैं। महाराजा रायसिंह के समय चित्रित भागवत पुराण प्रारंभिक चित्र माना जाता है। इस शैली में मुगल चित्रों की प्रतिलिपि भी बनी हुई है।
- बीकानेर शैली के प्रमुख रंग - इस शैली में पीला रंग प्रदान है। अधिकांशत गुलाबी तथा पीला रंग प्रयोग हुआ है तथा किनारों पर पीला व लाल रंग प्रयुक्त हुआ है।
- बीकानेर शैली में पुरुष आकृति एवं वेशभूषा - इस शैली में पुरुष आकृति उग्र, दाढ़ी-मूछों से युक्त व वीर भाव प्रदर्शित करती हुई है। फैले हुए जामें पहने, ऊँची शिखराकार पगड़ी व पीठ पर ढाल और हाथ में भाले लिए हुए चित्रित।
- बीकानेर शैली में नारी आकृति व वेशभूषा - इस शैली में मृगनयनी भृकुटी धनुष आकार, लंबी इकहरी तन्वंगी नायिकाएं, लंबी नाक, उन्नत ग्रीवा, पतले अधर। आंखें कमल कोशवत/ मृगनयनी तंग चोली, पारदर्शी ओढ़नी, घेरदार घागरे, मोतियों के आभूषणों से सुसज्जित है।
बीकानेर शैली की अन्य विशेषताएं:-
- आम, ऊंट व घोड़े के चित्र की प्रमुखता।
- यह चित्रकला शैली मुगल शैली व दक्षिण शैली से प्रभावित शैली है।
- काष्ठ पट्टिकाओ एवं ऊंट की खाल पर चित्रण।
- बीकानेर शैली को मथेरन एवं उस्ता कलाकारों ने पल्लवित और पुष्पित किया है।
- नीले आकाश में सुनहरे छल्लेदार व गोल श्वेत बादल।
- इस शैली में चित्रकार चित्र बनाकर उसके नीचे अपना नाम व तिथि अंकन करते थे।
③. किशनगढ़ शैली
- किशनगढ़ शैली के प्रमुख राजा - सावंत सिंह (नागरीदास) - इनका शासनकाल इस शैली का स्वर्णकाल कहलाता है।
- किशनगढ़ शैली के प्रमुख चितेरे - मोरध्वज, भंवरलाल, सुरध्वज, निहालचंद, लाडलीदास, रामनाथ, तुलसीदास, सवाईराम चित्रकला की किशनगढ़ शैली से संबंधित है।
- किशनगढ़ शैली में प्रमुख चित्रित ग्रंथ व विषय - इस शैली में चांदनी रात की संगीत गोष्टी तथा बनी-ठनी प्रमुख चित्रित ग्रंथ है। राधा-कृष्ण पर आधारित चित्रण व भागवत पुराण, गीत गोविंद, बिहारी चंद्रिका आदि ग्रंथों पर चित्रण हुए हैं। नागरीदास के समय प्रमुख चित्रकार मोरध्वज निहालचंद ने उनकी प्रेमिका रसिकप्रिया/बणी-ठणी का चित्र बनाया था। इसमें वल्लभीय अद्वैतवाद की चरम अभिव्यक्ति की है।
- किशनगढ़ शैली के प्रमुख रंग - इस शैली में श्वेत और गुलाबी रंगों का मिश्रण है। हाशिये में गुलाबी रंग प्रयुक्त हुआ है।
- किशनगढ़ शैली में पुरुष आकृति व वेशभूषा - इस शैली में छरहरे पुरुष, उन्नत स्कंध, समुन्नत ललाट, पतले अधर, लंबी आजानु बांहें, नुकीली चिबुक, लंबी ग्रीवा मादक भाव से युक्तआदि। पेचबंधी पगड़िया, लंबा जमा व पाजामा, कमर में दुपट्टा।
- किशनगढ़ शैली में नारी आकृति व वेशभूषा - कमल और खंजन सी आंखें जिनकी काली रेखाएं कर्णस्पर्शी है, सांप के समान पतली भृकुटि, चमेली की पंखुड़ियां से अधर, लंबी व सुराहीदार ग्रीवा, दीर्घ नाक, हाथ में अर्द्धमुकुलित कमल कली, लंबे बाल, लंबी नायिकाएं।लहंगा, चोली और पारदर्शी आंचल से आचल से सज्जित।
किशनगढ़ शैली की अन्य विशेषताएं:-
- नौका विहार व कुंजों से आच्छादित भवन।
- वेसरि (नाक का भूषण) अनोखा व प्रमुख आभूषण।
- चांदनी रात में राधा-कृष्ण की केलिक्रीडा, बादलों का सिंदूरी चित्रण। रागरागिनी चित्रण व भित्ति चित्रण इस शैली में बिल्कुल भी उपलब्ध नहीं है।
- कांगड़ा शैली व ब्रज साहित्य से प्रभावित। भ्रमर मुख्यतः चित्रित है।
- नारी सौंदर्य इस शैली की प्रमुख विशेषता है।
- इस शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय विद्वान स्वर्गीय एरिक डिक्शन व डॉ. फैयाज अली को जाता है।
- 5 मई 1973 में राजस्थानी चित्र शैली के चित्र बनी-ठनी पर डाक टिकट जारी किया गया।
- अमरचंद द्वारा चित्रित चांदनी रात की संगोष्ठी किशनगढ़ चित्रकला शैली का प्रमुख विषय है।
- इस शैली में मुख्य रूप से केले वृक्ष को चिन्हित किया गया है।
④. अजमेर शैली
- अजमेर शैली के प्रमुख चित्रकार - तैयब, रायसिंह, चांद, नवला, लालजी, नारायण भाटी व एक महिला चित्रकार साहिबा।
- अजमेर शैली के प्रमुख रंग - लाल, पीले, हरे व नीले रंगों के साथ-साथ बैंगनी रंग का विशेष प्रयोग हुआ है।
- अजमेर शैली में पुरुष आकृति व वेशभूषा - वीरोचित गुणों से युक्त पुरुष, लंबे-तगड़े, गोल आंखें, मुंछे बांकी अथवा छल्लेदार, लंबी जुल्फ है। पायजामा व कमरबंद, जामा तथा मुगल व राठौड़ी पगड़ी।
- अजमेर शैली में नारी आकृति व वेशभूषा - आकर्षक व कोमलांगी महिलाएं, घने व काले बाल, लंबे बाल, अंगुलिया पैनी व हाथों पर मेहंदी रची हुई। बसेड़ा, लहंगा, कचुकी तथा अन्य आकर्षक आभूषण।
⑤. नागौर शेली
- नागौर शैली का विकास 18वीं शताब्दी के शुरुआत से माना जाता है।
- इस शैली का सही और सर्वाधिक स्वरूप नागौर किले के महलों के भित्ति चित्रों में विशेष दृष्टव्य है।
- इस शैली में बीकानेर शैली, अजमेर शैली, जोधपुर शैली, मुगल शैली और दक्षिणी शैलियों का मिलाजुला प्रभाव है।
- नागौर शैली में नायक-नायिकाओं की शबीह लंबी, चपटा ललाट, छोटी आंखें, परदाज से बनाई हुई झुर्रियां का सधा हुआ अंकन हुआ है।
- इस शैली में बुझे हुए रंगों का अधिक प्रयोग हुआ है।
- इस शैली में पारदर्शी वेशभूषा एक खास विशेषता है।
⑥. जैसलमेर शैली
- जैसलमेर शैली का स्वर्ण काल महाराजा मूलराज द्वितीय के शासनकाल को माना जाता है।
- लोद्रवा की राजकुमारी मूमल (मरू महोत्सव जैसलमेर में आज भी मिस मूमल प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है) का चित्र जैसलमेर चित्रकला शैली का प्रमुख विषय है।
- इस शैली में पुरुषों के मुख पर दाढ़ी-मूछें तथा मुखाकृति ओज व वीरता से परिपूर्ण है।
- जैसलमेर के कलाविदों ने मुगल कला या जोधपुर शैली का प्रभाव नहीं आने दिया है।
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