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राजस्थान की नदियां ( Rivers of Rajasthan in Hindi ) - Rajasthan Ki Nadiya in Hindi

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राजस्थान की नदियां


    राजस्थान की प्रमुख नदियां की जानकारी

    प्राचीन समय से ही मानव सभ्यताओं के विकास में नदियों का विशेष महत्व रहा है, क्योंकि जीव जगत एवं मानव के लिए जल भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि भोजन एवं वायु। क्योंकि कोई भी प्राणी बिना भोजन के हफ्ते भर जीवित रह सकता है, लेकिन बिना पानी के कुछ ही घंटे जीवित रह सकता है। इसलिए विश्व की अधिकांश मानव सभ्यताएं नदियों के किनारे ही पनपी है, जहां पर नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से भूमि अधिक उपजाऊ होती थी। इसके अलावा नदियां परिवहन के साधन के रूप में भी प्रयुक्त होती थी। उदाहरण के तौर पर भीलवाड़ा में कोठारी नदी के किनारे बागोर सभ्यता, नीमकाथाना (सीकर) में कांतली नदी के किनारे गणेश्वर सभ्यता का विकास हुआ है। 
                राजस्थान की अधिकांश नदियां बरसाती नदियां हैं, जिनमें से लूनी नदी, चंबल नदी, बनास नदी, बाणगंगा नदी, माही नदी, कोठारी नदी, बेड़च  नदी आदि प्रमुख नदिया है। यहां पर बारहमासी नदियां बहुत ही कम है, केवल चंबल और माही नदी ही वर्षभर प्रवाहित होती है। राज्य के मध्यवर्ती भाग में अवस्थित अरावली पर्वत श्रंखला भारत के महान जल विभाजक का कार्य करती है। 

    जल विभाजक (Water Fault) किसे कहते है?

    एक नदी बेसिन या नदी द्रोणी दूसरी नदी बेसिन या नदी द्रोणी से जिस उच्च भूमि या पर्वत द्वारा अलग होती है, उसे जल विभाजक कहते हैं। 
    उदाहरण के तौर पर उत्तर भारत में अरावली पर्वत श्रेणी और उसके उत्तर की उच्च भूमि सिंधु और गंगा द्रोणियों को अलग करने के कारण जल विभाजक का काम करती है। 

    अपवाह तंत्र (Drainage) किसे कहते है?

    निश्चित वाहिकाओं से हो रहे जल प्रवाह को ही अपवाह कहते हैं। इन निश्चित वाहिकाओं के जाल को ही अपवाह तंत्र कहा जाता है। 
                किसी भी क्षेत्र का अपवाह तंत्र वहां के चट्टानों की प्रकृति एवं संरचना, बहते जल की मात्रा और बहाव की अवधि, भूवैज्ञानिक समय अवधि, स्थलाकृति, ढाल आदि का परिणाम है। जैसे कि राजस्थान में विभिन्न दिशाओं से बहती हुई छोटी-छोटी धाराएं आकर एक साथ आपस में मिल जाती है तथा एक मुख्य नदी का निर्माण करती है। अंततः इसका निकास किसी बड़े जलाशय - समुंद्र, महासागर या झील में होता है। तो छोटी-छोटी धाराओं की इस जाल को ही अपवाह तंत्र कहते हैं। कोई भी नदी अपनी सहायक नदियों सहित जिस क्षेत्र का जल लेकर आगे बढ़ती हैं वह उसका प्रवाह क्षेत्र या नदी द्रोणी या जल अपवाह तंत्र कहलाता है

    राजस्थान के अपवाह तंत्र का वर्गीकरण

    राजस्थान के अपवाह तंत्र को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। समुद्र में जल गिराने के आधार पर इसको मुख्य रूप तीन समूहों में बांटा जा सकता है:-
     ①. बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र ⇢ यहां पढ़ें
     ②. अरब सागर का अपवाह तंत्र⇢ यहां पढ़ें
     ③. आंतरिक अपवाह तंत्र ⇢ यहां पढ़ें

    जल ग्रहण क्षेत्र (Catchment Area) क्या है?

     ①. जल ग्रहण क्षेत्र - एक नदी किसी विशेष क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है, उस क्षेत्र को ही जल ग्रहण क्षेत्र कहा जाता है।
     ②. अपवाह द्रोणी - किसी नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को ही अपवाह द्रोणी कहते हैं।
     ③. जल संभर - एक अपवाह द्रोणी को दूसरे अपवाह द्रोणी से अलग करने वाली सीमा को ही जल विभाजक या जल संभर कहते हैं।
     ④. नदी द्रोणी तथा जल संभर में अंतर - नदी द्रोणी का आकार बड़ा होता है, जबकि जल संभर का आकार छोटा होता है।

    राजस्थान की नदियों का अपवाह क्षेत्र

    • चंबल नदी के अपवाह क्षेत्र के जिले - चंबल नदी के अपवाह क्षेत्र वाले जिले - कोटा, करौली, धौलपुर, सवाई माधोपुर, बारां, झालावाड़, बूंदी आदि हैं। जहां से इसका अपवाह क्षेत्र 72032.05 वर्ग किलोमीटर है।
    • माही नदी के अपवाह क्षेत्र के जिले - माही नदी राजस्थान में डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा जिलों से होकर बहती है तथा यहां इसका अपवाह क्षेत्र 16551.18 वर्ग किलोमीटर है।
    • लूनी नदी के अपवाह क्षेत्र वाले जिले - लूनी नदी का अपवाह क्षेत्र राजस्थान के जोधपुर, पाली, अजमेर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही का कुछ भाग है तथा यहां इसका अपवाह क्षेत्र 34866.40 वर्ग किलोमीटर है।
    • साबरमती नदी के अपवाह क्षेत्र के जिले - साबरमती नदी राजस्थान के उदयपुर जिले में बहती है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 3288.68 वर्ग किलोमीटर है।
    • बनास नदी के अपवाह क्षेत्र के जिले - बनास नदी का अपवाह क्षेत्र मुख्यतः टोंक एवं सवाई माधोपुर जिलों में है। इसका अपवाह क्षेत्र 2837.81 वर्ग किलोमीटर है।
    • आंतरिक प्रवाह क्रम - आंतरिक प्रवाह के रूप में कांतली, साबी, बाणगंगा, लूनी नदी एवं इसकी सहायक नदियां आदि है। जिनका अपवाह क्षेत्र नागौर, सीकर, झुंझुनू, जयपुर, बाड़मेर, जोधपुर , जैसलमेर, पाली, जालौर आदि जिलों से है। इसका अपवाह क्षेत्रफल 385587.21 वर्ग किलोमीटर है।

    राजस्थान की नदियों का क्षेत्रवार वर्गीकरण

    • उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान की नदियां - लूनी नदी, खारी नदी, जवाई नदी, सुकड़ी नदी, सागी नदी, घग्गर नदी, जोजड़ी नदी, बांडी नदी, कांतली नदी, काकनी/काकनेय नदी आदि।
    • दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान की नदियां - पश्चिमी बनास नदी, वाकल नदी, सेई नदी, साबरमती नदी आदि।
    • दक्षिणी राजस्थान की नदियां - माही नदी, जाखम नदी, सोम नदी, मोरेन नदी, अनास नदी आदि।
    • दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान की नदियां - चंबल नदी, पार्वती नदी , कालीसिंध नदी, कुनु नदी, कुराल नदी, नेवज नदी, आहू नदी, परवन नदी चाकण नदी, मेज नदी, आलनिया नदी, छोटी काली सिंध नदी, बनास नदी, बामनी नदी, कोठारी नदी, खारी नदी, माशी नदी, डाई नदी, मोरेल नदी, कालीसिल नदी, सोहदरा नदी,  ढील नदी आदि।
    • पूर्वी राजस्थान की नदियां - साबी नदी, मेंथा नदी, रूपारेल नदी , रूपनगढ़ नदी, बाणगंगा नदी, गंभीर नदी, पार्वती नदी आदि।

    नदियों में या उनके निकट स्थित अभयारण्य

    • जवाहर सागर अभयारण्य - चंबल नदी। 
    • राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य - चंबल नदी। 
    • बस्सी अभयारण्य (चित्तौड़गढ़) - ओरई व बामणी नदियों का उद्गम।
    • फुलवारी की नाल अभयारण्य - वाकल, मानसी व सोम नदी।
    • शेरगढ़ अभयारण्य (बारां) - परवन नदी। 
    • भैंसरोडगढ़ (चित्तौड़गढ़) अभयारण्य - चंबल एवं बामनी नदियों के संगम पर स्थित।

    राजस्थान में नदियों के त्रिवेणी संगम स्थल

    • बेणेश्वर (डूंगरपुर) - माही, सोम एवं जाखम नदियों का संगम स्थल।
    • रामेश्वर घाट (सवाई माधोपुर) - बनास, चंबल एवं सीप नदियों का त्रिवेणी संगम स्थल। 
    • बीगोद के पास (भीलवाड़ा) - बनास, बेड़च एवं मेनाल नदियों का त्रिवेणी संगम स्थल। 

    नदियों के किनारे/संगम पर बने दुर्ग

    • गागरोन का किला (झालावाड़) - आहू एवं कालीसिंध नदियों के संगम पर स्थित। 
    • शेरगढ़ (कोषवर्द्धन) दुर्ग (बारां) - परवन नदी के किनारे स्थित।
    • मनोहर थाना दुर्ग (झालावाड़) - परवन और कालीखाड़ नदियों के संगम पर स्थित।
    • भैंसरोडगढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़) - चंबल एवं बामनी नदियों के संगम पर स्थित।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़) -  गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम स्थल के निकट पहाड़ी पर स्थित। 
    • जालौर दुर्ग (सुवर्णगिरि दुर्ग) - सुकड़ी नदी के किनारे पहाड़ी पर बना दुर्ग। 
    • गढ़ पैलेस, कोटा (कोटा दुर्ग) - कोटा में चंबल नदी के किनारे स्थित दुर्ग। 

    राजस्थान की नदियां के अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

    • सोम नदी के किनारे डूंगरपुर में देव सोमनाथ मंदिर स्थित है।
    • राज्य में पूर्णत: बहने वाली सबसे लम्बी नदी तथा सर्वाधिक जलग्रहण क्षेत्र वाली नदी बनास नदी है।
    • सर्वाधिक जिलों में बहने वाली नदियाँ : चम्बल, बनास व लूणी नदियां। प्रत्येक नदी 6 जिलों में बहती है।
    • राजस्थान में कोटा संभाग में सर्वाधिक नदियां बहती है।
    • अंतर्राज्यीय सीमा (राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा) बनाने वाली राजस्थान की एकमात्र नदी चम्बल नदी है।
    • राजस्थान की सबसे लम्बी नदी व सर्वाधिक सतही जल वाली नदी चम्बल नदी है। 
    • सर्वाधिक बांध चम्बल नदी पर बने हुए है।
    • चम्बल नदी पर भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़)  के निकट चूलिया जल प्रपात तथा मांगली नदी पर बूंदी में भीमलत जल प्रपात है।
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