Type Here to Get Search Results !
Type Here to Get Search Results !

राजस्थान में 1857 की क्रांति एवं प्रमुख सैनिक छावनियाँ - 1857 Revolution in Rajasthan in Hindi

Telegram GroupJoin Now


राजस्थान में 1857 क्रांति का विद्रोह : आज की इस पोस्ट में राजस्थान में 1857 की क्रांति का विद्रोह एवं छावनियों पर एक विस्तृत लेख लिखा गया है। इसमें आप सभी के सवाल 1857 की क्रांति में राजस्थान का योगदान, राजस्थान में 1857 की क्रांति के कारण, 1857 की क्रांति और राजस्थान नोट्स, 1857 की क्रांति और राजस्थान क्वेश्चन, राजस्थान में 1857 की क्रांति Trick PDF Download, नसीराबाद छावनी, नीमच छावनी, एरिनपुरा छावनी, आउवा में विद्रोह आदि पर महत्वपूर्ण तथ्य शामिल किये गए है। आप सभी इसको पूरा जरूर पढ़ें:-
राजस्थान में 1857 की क्रांति एवं प्रमुख सैनिक छावनियाँ - 1857 Revolution in Rajasthan in Hindi
राजस्थान में 1857 की क्रांति एवं प्रमुख सैनिक छावनियाँ

राजस्थान में 1857 की क्रांति

पूरे देश में 1857 की क्रांति का तत्कालीन मूल कारण 'एनफिल्ड रायफल्स' में चर्बी लगे कारतूस के प्रयोग करने के कारण भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची, इन कारतूसों को मूंह से खोलना पड़ता था और उसमें से चिकना पदार्थ निकलता था। इस चिकने पदार्थ के बारे में हिन्दुओं में भ्रांति थी कि इसमें गाय की चर्बी है, तो मुसलमानों में भांति थी कि इसमें सूअर की चर्बी है। इससे 29 मार्च, 1857 को 34वीं रेजिमेंट के मंगल पाण्डे  ने बैरकपुर छावनी में अंग्रेज सैनिकों को गोली मार दी। 1857 की क्रांति के प्रतीक चिह्न में 'कमल व रोटी' है। राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरुआत नसीराबाद (अजमेर) से 28 मई, 1857 को तथा क्रांति का अंत सीकर में हुआ। 
1857 की क्रांति के समय राजपुताना में पॉलिटिकल एजेंट - 
  • कोटा में - मेजर बर्टन
  • भरतपुर में - मॉरिसन
  • जोधपुर में - मैक मैसन
  • जयपुर में - ईडन
  • सिरोही में - जे. डी. हॉल
  • उदयपुर में - शॉवर्स
1857 की क्रांति के समय राजपुताना के शासक - 
  • धौलपुर - महाराजा भगवन्तसिंह
  • भरतपुर - महाराजा जसवंसिंह
  • अलवर - महाराजा  विनयसिंह
  • करौली - महाराजा मदनपाल
  • जयपुर - महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय
  • कोटा - महाराव रामसिंह द्वितीय
  • झालावाड़ - राजराणा पृथ्वीसिंह
  • बांसवाड़ा - महारावल लक्ष्मणसिंह
  • प्रतापगढ़ - महारावल दलपतसिंह
  • डूंगरपुर - महारावल उदयसिंह
  • उदयपुर (मेवाड़) - महाराणा स्वरूपसिंह
  • जोधपुर - महाराजा तख्तसिंह
  • बीकानेर - महाराजा सरदारसिंह
  • टोंक - नवाब वजिरुदौला
  • बूंदी - महाराव रामसिंह
  • जैसलमेर - महारावल रणजीतसिंह
  • सिरोही - महारावल शिवसिंह

आऊवा ठिकाने में विद्रोह -

मारवाड़ में विद्रोह का शक्तिशाली केंद्र आउवा था। जोधपुर लीजन की पूर्बिया सैनिकों की टुकड़ी को माउन्ट आबू के निकट अनाद्रा में रोवा के ठाकुर के विद्रोह के दमन के लिए भेजा गया। इस टुकड़ी ने 21 अगस्त, 1857 को आबू में विद्रोह कर दिया। क्रांतिकारियों ने अनेक अंग्रेजों को बंदी बना लिया था। इसके पश्चात वे 23 अगस्त, 1857 को ऐरिनपुरा छावनी आ गये और वहां छावनी को लूटकर 'चलो दिल्ली, मारो फिरंगी' का नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े। दिल्ली जाते समय बीच में आऊवा (पाली) पहुंचे, जहाँ के ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत ने उनकी सहायता की तथा अपना नेतृत्व प्रदान किया, जिस कारण मारवाड़ का राजा तख्तसिंह व अंग्रेज अधिकारीयों ने नाराज होकर 8 सितम्बर, 1857 को बिथौड़ा/बिठोड़ा (पाली) नामक स्थान पर ओनाड़सिंह पँवार, तख्तसिंह का सेनापति फौजदार राजमल लोढा व अंग्रेज अधिकारी हीथकोट के नेतृत्व में सैना ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत के नेतृत्व वाले क्रांतिकारियों के दल के दमन के लिए भेजी, जिसका मुकाबला कुशालसिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने किया, जिसमें कुशालसिंह की सैना जीत गई तथा ओनाड़सिंह व हीथकोट मारे गये। इसकी जानकारी मिलते ही एजेन्ट टू गवर्नर जनरल लॉर्ड पेट्रिक लॉरेन्स व मारवाड़ के पॉलिटीकल एजेन्ट मेक मैसन के नेतृत्व में अजमेर से सेना कुशालसिंह के नेतृत्व वाले क्रांतिकारियों के दमन के लिए चोलावास नामक स्थान पर गयी, जहां पर कुशालसिंह के नेतृत्व वाले क्रांतिकारियों के दल से 18 सितम्बर, 1857 को चेलावास नामक स्थान पर युद्ध हुआ, जिसमें क्रांतिकारियों ने मेक मैसन की गर्दन काटकर आऊवा के किले के द्वार पर लटका दी। इस युद्ध को 'कालों-गौरों' का युद्ध कहा जाता है। गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग ने कर्नल हॉम्स के नेतृत्व में पालनपुर (गुजरात) व नसीराबाद (अजमेर) की संयुक्त विशाल सेना 20 जनवरी, 1858 को आउवा भेजी, जिसने कुशालसिंह व एरिनपुरा के सैनिकों का दमन किया। आऊवा से कुशालसिंह ठाकुर ने कोठारिया के रावत जोधसिंह के घर जाकर शरण ली। 8 अगस्त, 1860 को नीमच में कुशालसिंह ने अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। 'मेजर टेलर आयोग' ने उनके खिलाफ जाँच की, जिसने 10 नवम्बर, 1860 को कुशालसिंह को निर्दोष साबित कर बिना किसी शर्त के रिहा कर दिया। अंग्रेजी सेना लूटपाट कर 'सुगाली माता' की मूर्ति को अपने साथ अजमेर ले आये तथा वर्तमान में यह पाली के बागड़ संग्रहालय में स्थित है। सुगाली माता को 1857 की क्रांति की देवी भी कहते है।

कोटा में विद्रोह (15 अक्टूबर, 1857 में) -

यहां पर कोई भी सैनिक छावनी नहीं थी, केवल जनता ने विद्रोह किया और छ: माह तक शासन किया था। जयदयाल (वकील) व मेहराब खाँ (रिसलदार) कोटा में लोगों में क्रांति की भावनाएं भर रहे थे, इसकी जानकारी कोटा के पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन को मिलते ही, उन्होंने 14 अक्टूबर, 1857 को कोटा के महाराव रामसिंह को  जयदयाल व मेहराब खाँ को दण्डित करने की सलाह दी। जयदयाल व मेहराब खाँ के नेतृत्व में जनता ने 15 अक्टूबर, 1857 को क्रांति का बिगुल बजा दिया और रेजीडेंसी को घेर लिया। ब्रिजलाल भवन महल, कोटा में पॉलिटीकल एजेन्ट बर्टन का सिर काटकर सिर को भाले पर रखकर पूरे कोटा शहर में खुला प्रदर्शन किया तथा उसके दो पुत्रों व एक डॉ० सैडलर कॉटम की हत्या कर कोटा पर अधिकार कर लिया। कोटा के महाराव रामसिंह द्वितीय को उनके महल मे नजरबन्द कर कोटा राज्य की तोपों को अपने कब्जे में कर लिया था। यहां पर छ: माह तक जनता का शासन रहा था। जनवरी, 1858 को करौली की सेना ने आकर कोटा के महाराव रामसिंह द्वितीय को नजरबंदी से आजाद करवाया था। कोटा के राजा रामसिंह द्वितीय ने एजेन्ट टू गवर्नर जनरल पेट्रिक लॉरेन्स को सहायता देने के लिए कहा तो लॉरेन्स ने मार्च, 1858 को रॉबर्ट्स के नेतृत्व में सेना भेजी, जिसमें करौली के राजा मदनपाल ने अंग्रेजों की सहायता की और अंग्रेजी सेना ने कोटा में क्रांतिकारियों पर आक्रमण किया और 30 मार्च, 1858 को कोटा को अपने कब्जे में कर लिया था। 1857 के विद्रोह के बाद कोटा रियासत को तोपों की सलामी कम कर दी गई। जयदयाल एवं मेहराब खान को कोटा एजेंसी भवन के पास फांसी दे दी गयी। करौली के राजा मदनपाल द्वारा दी गयी सहायता के बदले में उन्हें उपहार स्वरूप सर्वाधिक 17 तोपों की सलामी व जी०सी०आई की उपाधि दी गई। राजस्थान में सर्वप्रथम यही पर जनता द्वारा कोतवाली पर तिरंगा फहराया गया।

नीमच छावनी में विद्रोह (3 जून, 1857 में) -

यह छावनी मध्य प्रदेश में स्थित थी परन्तु इसकी देखरेख मेवाड़ का पॉलिटीकल एजेन्ट शॉवर्स करता था। 3 जून, 1857 को यहाँ पर मोहम्मद अली बेग व हीरासिंह के नेतृत्व में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। मोहम्मद अली बेग ने इस बात की शपथ लेने से इंकार कर दिया कि वह विद्रोह के समय अंग्रेजों का समर्थक रहेगा।1857 ई. की क्रांति के संदर्भ में मुहम्मद अली बेग ने कहा, कि 'अंग्रेजों ने अपनी शपथ भंग की है। क्या उन्होंने अवध पर अधिकार नहीं किया? अत: उन्हें यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, कि भारतीय अपनी शपथ का अनुपालन करेंगे।' इस छावनी से अंग्रेज बचकर भागे और मेवाड़ में चले गये, परन्तु क्रांतिकारियों ने डूंगला गाँव चित्तौड़गढ़ में रूंगाराम के घर में 40 अंग्रेज अफसरों को बन्दी बना लिया। यह सूचना मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट मेजर शॉवर्स को मिली तब शॉवर्स ने मेवाड़ के राजा स्वरूपसिंह को मदद देने के लिए कहा तो स्वरूपसिंह ने अंग्रेजों को वहाँ से रिहा करवाकर पिछोला झील के जगमन्दिर महल में शरण दी जहाँ उनकी देखभाल गोकुल चन्द मेहता ने की। बाद में मेवाड़ के पॉलिटीकल एजेन्ट शावर्स तथा कोटा के पॉलिटीकल एजेन्ट बर्टन, कोटा-बूंदी एवं मेवाड़ की सेना ने 6 जून, 1857 को वापिस नीमच छावनी पर अधिकार कर लिया।

नसीराबाद छावनी में विद्रोह (28 मई, 1857 में) -

राजस्थान में सबसे पहले 1857 की क्रांति का विद्रोह यही से शुरू हुआ था। 28 मई, 1857 को नसीराबाद आई 'पन्द्रहवीं बंगाल नैटिव इन्फैन्ट्री' टुकड़ी ने असंतुष्ट होकर विद्रोह कर दिया। 30 वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री टुकड़ी में भी 30 मई को असंतोष फुट पड़ने से इस टुकड़ी का '30वीं बंगाल नैटिव इन्फैन्ट्री टुकड़ी' ने साथ दिया। यहाँ के सैनिकों ने 'न्यूबरी'  नामक अधिकारी को मारकर 18 जून, 1857 को दिल्ली पहुँचे। दिल्ली पहुंचकर वहां पर अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया।

एरिनपुरा छावनी में (21 अगस्त, 1857) -

नसीराबाद व नीमच छावनियों से विद्रोह की सूचना मिलते ही एरिनपुरा छावनी के सैनिकों ने 21 अगस्त, 1857 को एजेन्ट टू गवर्नर जनरल के पुत्र को मारकर ईडर निवासी शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया और 'चलो दिल्ली-मारो फिरंगी' का नारा देते हुये दिल्ली की ओर चल पड़े। क्रांतिकारियों का यह दल आउवा के ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत से जा मिला।

भरतपुर में विद्रोह (31 मई, 1857 में) -

भरतपुर के राजा जसवंत सिंह नाबालिग था, जिस कारण उनका शासन पॉलिटीकल एजेन्ट मॉरीसन की देखरेख में होता था। इससे नाराज होकर गुर्जरों व मेवों ने 31 मई, 1857 को विद्रोह कर दिया, तो मॉरीसन भरतपुर से आगरा भाग गया।

धौलपुर में विद्रोह (27 अक्टूबर, 1857) -

देवा गुर्जर, रामचन्द्र व हीरालाल राणा के नेतृत्व में यहां के लोगों एवं क्रांतिकारी सैनिकों ने विद्रोह कर धौलपुर पर अधिकार कर लिया, जिसे दो माह बाद दिसंबर, 1857 को पटियाला नरेश ने की सेना ने आकर विद्रोह को समाप्त करवाया था।

 यह भी पढ़ें:- 
आज की इस पोस्ट में राजस्थान में 1857 की क्रांति का विद्रोह एवं छावनियों पर एक विस्तृत लेख लिखा गया है। इसमें आप सभी के सवाल 1857 की क्रांति में राजस्थान का योगदान, राजस्थान में 1857 की क्रांति के कारण, 1857 की क्रांति और राजस्थान नोट्स, 1857 की क्रांति GK और राजस्थान क्वेश्चन PDF, राजस्थान में 1857 की क्रांति Trick PDF Download, नसीराबाद छावनी, नीमच छावनी, एरिनपुरा छावनी, आउवा में विद्रोह आदि पर महत्वपूर्ण तथ्य शामिल किये गए है। 
Tags : rajasthan me 1857 ki kranti question answer, 1857 ki kranti book, 1857 ki kranti me rajasthan ka yogdan, 1857 ki kranti upsc notes pdf download, rajasthan me 1857 ki kranti trick pdf question online test quiz netritv etc.
Telegram GroupJoin Now


Top Post Ad

Below Post Ad