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चित्तौड़गढ़ दुर्ग/चित्तौड़गढ़ का किला - Chittorgarh Fort | Chittorgarh Ke Kile Ka Itihas

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Chittorgarh Fort : आज की इस पोस्ट में "चित्तौड़गढ़ दुर्ग/चित्तौड़गढ़ का किला" पर विस्तृत लेख लिखा गया है। Chittorgarh Ka Kila Histroy in Hindi - इसमें चित्तौड़गढ़ दुर्ग के उपनाम, चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रमुख साके, चित्तौड़गढ़ किले के सात दरवाजे, चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दर्शनीय स्थल, विजय स्तम्भ, जैन कीर्ति स्तम्भ, मीरा मंदिर, भीमकुण्ड तालाब आदि को शामिल किया गया है। आप इसको पूरा जरूर पढ़ें:-

चित्तौड़गढ़ दुर्ग/चित्तौड़गढ़ का किला - Chittorgarh Fort History in Hindi | Chittorgarh Ke Kile Ka Itihas
चित्तौड़गढ़ दुर्ग


    चित्तौड़गढ़ दुर्ग/किले का इतिहास

    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग के लिए एक कथन बहुत प्रचलित है - "गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकि सब गढ़ैया"|
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग/किले के उपनाम - राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर, मालवा का प्रवेश द्वार, चित्रकूट दुर्ग, खिज्राबाद, वॉटर फोर्ट, राजस्थान का गौरव, राजस्थान का दक्षिणी प्रवेश द्वार।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण - इस अभेद्य चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण मौर्य शासक चित्रांगद (चित्रांग) मौर्य ने गम्भीरी और बेड़च नदियों के संगम स्थल के निकट आरावली पर्वतमाला के एक विशाल पर्वत शिखर मेसा के पठार पर करवाया था।
    • गुहिलवंशीय शासक बप्पा रावल ने हरित ऋषि के आशीर्वाद से मौर्य शासक मान मौर्य से 734 ईस्वी में चित्तौड़गढ़ दुर्ग को जीता था और मेवाड़ में गुहिल  साम्राज्य की नीव रखी थी। इसलिए बप्पा रावल को 'गुहिल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक" कहा जाता है।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग के रास्ते में उदयसिंह के वीर सेनापति जयमल एवं पता की छतरियां स्थित है।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग व्हेल मछली के आकार में बना हुआ है।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में गौमुख कुंड के पास रानी पद्मिनी का जौहर स्थल स्थित है।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में नौगजा पीर की कब्र भी स्थित है।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में विजय स्तंभ, कुंभ श्याम मंदिर, तुलजा भवानी का मंदिर, भीम कुंड, रानी पद्मिनी का महल, मीराबाई का मंदिर आदि स्थित है।
    • चित्तौड़गढ़ के किले के सात दरवाजे - भैरवपोल, गणेशपोल, पाडनपोल, हनुमानगढ़, जोडलापोल, रामपोल एवं लक्ष्मणपोल है।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमें खेती की जाती है।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जलापूर्ति के मुख्य स्रोत - रत्नेश्वर तालाब, गोमुख झरना, कुम्भ सागर, हाथीकुंड, झालीबाव तालाब, चित्रांग मोरी तालाब, भीमलत तालाब आदि।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग को वर्ष 2013 में 'यूनेस्को की विश्व विरासत' स्थलों की सूची में शामिल किया गया।

    चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित दर्शनीय स्थल

     विजय स्तम्भ :- 
    • विजय स्तंभ का निर्माण - विजय स्तंभ का निर्माण महाराणा कुंभा द्वारा मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के खिलाफ 1437 ईस्वी में सारंगपुर विजय के उपलक्ष में महान वास्तुशिल्पी मंडन के मार्गदर्शन में 1440 से 1448 के मध्य करवाया गया था।
    • विजय स्तंभ के उपनाम - हिंदू मूर्तिकला का विश्वकोश, विक्ट्री टावर, मूर्तियों का अजायबघर, भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश, विष्णु ध्वज आदि।
    • यह विजय स्तंभ 9 मंजिला है। इसकी आठवीं मंजिल पर "अल्लाह " शब्द खुदा हुआ है तथा इसकी तीसरी मंजिल पर 9 बार अल्लाह शब्द अरबी भाषा में लिखा हुआ है।
    • यह विजय स्तम्भ डमरु के आकार का है।
    • विजय स्तंभ का आधार 30 फीट है, ऊंचाई 122 फीट है, मंजिले 09, सीढ़ियां 157 है।
    • कर्नल जेम्स टॉड ने विजय स्तम्भ के बारे में कहा - "यह क़ुतुब मीनार से भी बेहतरीन इमारत है"|
    • विजयस्तम्भ को कर्नल जेम्स तोड़ ने 'रोम का टार्जन' की उपमा दी है।
    • विजय स्तंभ के शिल्पकार - जेता और उसके पुत्र नापा, पूंजा और पोमा।

     कुंभ श्याम मंदिर एवं कलिका माता मंदिर :- 
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुंभ श्याम मंदिर व कालिका माता मंदिर (गुहिल वंश की इष्ट देवी ) का निर्माण आठवीं सदी में हुआ था।
    • कुंभ श्याम मंदिर प्रतिहारकालीन  मंदिर है।
    • ये दोनों मंदिर महामारू शैली के हैं।
    • महाराणा कुंभा ने कुंभ श्याम मंदिर का जीर्णोद्धार 15वीं सदी में करवाया था। 

     राणी पद्मिनी का महल :- 
    • महाराणा रतनसिंह की पत्नी का नाम रानी पद्मिनी था और वह अपने सौन्दर्य के लिए विख्यात थी।
    • पद्मिनी को पाने के लिए ही अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। इसी के नाम पर यह पद्मिनी महल बनाया गया है।
    • पद्मिनी महल के पास ही पद्मिनी तालाब तथा जल के मध्य में एक जल महल भी बना हैं।
     तुलजा भवानी मंदिर :-
    • तुलजा भवानी माता के इस मंदिर का निर्माण उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज के दासी पुत्र बनवीर ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अंतिम द्वार रामपोल से दक्षिण की ओर करवाया था।
    • तुलजा भवानी मंदिर के पास पुरोहित जी की हवेली भी स्थित है।
    • तुलजा भवानी छत्रपति शिवाजी की आराध्य देवी थी।

     मीरा बाई का मंदिर :-
    • मेवाड़ के राणा सांगा के द्वितीय पुत्र भोज की पत्नी मीराबाई के इस मंदिर में मीरा की प्रतिमा के स्थान पर केवल एक तस्वीर लगी हुई हैं।
    • मीरा बाई के मंदिर सामने उनके गुरु संत रैदास की छतरी है।
    • मीरा बाई का मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में इंडो-आर्य शैली में निर्मित है।
    • मीराबाई श्री कृष्ण की परम भक्त थी। 

     जैन कीर्ति स्तंभ :- 
    • जैन कीर्ति स्तंभ का निर्माण - जैन कीर्ति स्तंभ का निर्माण दिगंबर जैन महाजन जीजाक द्वारा करवाया गया था।
    • जैन कीर्ति स्तंभ जैन धर्म के प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।
    • जैन कीर्ति स्तंभ चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।
    • जैन कीर्ति स्तंभ सात मंजिला इमारत है।
    • कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति की शुरुआत अत्रि ने की  तथा समाप्त उसके पुत्र महेश भट्ट ने की। 

     श्रृंगार चंवरी :- 
    • शांतिनाथ जैन मंदिर जिसका निर्माण महाराणा कुंभा के कोषाधिपति के पुत्र वेल्का ने चित्तौड़गढ़ किले में करवाया था।
    • यह मंदिर राजपूत व जैन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। यहां कुंभा की पुत्री रमाबाई की चवरी बनी हुई है। 

     अन्य स्थल :- 
    • गोरा-बादल महल
    • भीमलत कुंड
    • नवलक्खा बुर्ज
    • चित्रांग मोरी तालाब
    • जयमल मेड़तिया एवं कल्ला राठौड़ की छतरियां

    चित्तौड़गढ़ दुर्ग के तीन साके

    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रथम साका : अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ईस्वी में चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया। जिसमें रतनसिंह ने केसरिया किया था तथा उसकी रानी पद्मिनी ने 1600 महिलाओं के साथ जौहर किया था। रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप के राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी। इसमें रतनसिंह के सेनापति गौरा एवं बादल वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ का नाम बदलकर अपने पुत्र के नाम पर खिज्राबाद रखा था तथा अलाउद्दीन ने इस दुर्ग की जिम्मेदारी अपने पुत्र खिज्र खां को सौपी। यह मेवाड़ का प्रथम साका तथा राजस्थान का दूसरा साका था। राजस्थान का प्रथम साका रणथम्भौर दुर्ग का है।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग का द्वितीय साका : गुजरात के बहादुरशाह ने 1534-35 में चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया। उस समय चित्तौड़गढ़ पर विक्रमादित्य का शासन था। रानी कर्मावती ने हुमायु को राखी भेजकर सहायता मांगी, परन्तु सही समय पर सहायता नहीं की। रानी कर्मावती ने दुर्ग की जिम्मेदारी बाघसिंह को सौपी। बाघसिंह पाडनपोल दरवाजे के बाहर लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इस प्रकार बाघसिंह ने केसरिया एवं रानी कर्मावती ने जौहर किया था।
    • चित्तौड़गढ़ दुर्ग का तृतीय साका : अकबर ने 1568 चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया था। उस समय चित्तौड़गढ़ पर उदयसिंह का शासन था। उदयसिंह दुर्ग की जिम्मेदारी अपने दो सेनापति जयमल एवं फत्ता को सौपकर गोगुन्दा चले गए। इसमें जयमल, फत्ता एवं जयमल के भतीज कल्लाजी ( चार हाथ के लोकदेवता) ने केसरिया एवं फत्ता की पत्नी फूलकंवर ने जौहर किया था।
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    आज की इस पोस्ट में "चित्तौड़गढ़ दुर्ग/चित्तौड़गढ़ का किला" पर विस्तृत लेख लिखा गया है। Chittorgarh Ka Kila Histroy in Hindi - इसमें चित्तौड़गढ़ दुर्ग के उपनाम, चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रमुख साके, चित्तौड़गढ़ किले के सात दरवाजे, चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दर्शनीय स्थल, विजय स्तम्भ, जैन कीर्ति स्तम्भ, मीरा मंदिर, भीमकुण्ड तालाब आदि को शामिल किया गया है। 
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