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कुंभलगढ़ दुर्ग/कुंभलगढ़ का किला - Kumbhalgarh Fort | Kumbhalgarh Ke Kile Ka Itihas

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कुम्भलगढ़ दुर्ग का इतिहास : आज की इस पोस्ट में कुम्भलगढ़ दुर्ग/कुम्भलगढ़ का किला पर एक विस्तृत लेख लिखा गया है। इसमें कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण, उपनाम, कुम्भलगढ़ दुर्ग का वास्तुकार/शिल्पी आदि को शामिल किया गया है।
कुंभलगढ़ दुर्ग/कुंभलगढ़ का किला - Kumbhalgarh Fort | Kumbhalgarh Ke Kile Ka Itihas
कुंभलगढ़ दुर्ग

कुंभलगढ़ दुर्ग (Kumbhalgarh Fort)

  • कुंभलगढ़ दुर्ग का निर्माण - कुंभलगढ़ दुर्ग का निर्माण 1443 ईस्वी से 1456 ईसवी के मध्य राजसमंद जिले के सादड़ी गांव के पास अरावली की जरगा पहाड़ी पर महाराणा कुंभा ने अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की स्मृति में करवाया था।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग का वास्तुकार/शिल्पी मंडन था।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग की दीवार की लंबाई 36 किलोमीटर है तथा इसकी चौड़ाई (7 मीटर) इतनी है कि उस पर 4 घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं। इसलिए कुंभलगढ़ दुर्ग की प्राचीर को भारत की महान दीवार कहते हैं।
  • पृथ्वीराज सिसोदिया का बचपन इसी दुर्ग में गुजरा था तथा यहीं पर उसकी 12 खंभों की छतरी भी स्थित है।
  • कर्नल जेम्स टॉड ने इस दुर्ग के सुदृढ़ बना होने के कारण इसे एस्ट्रुस्कन की उपमा दी है।
  • कुम्भलगढ़ दुर्ग के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग में ही उदय सिंह का 1537 ईस्वी में राज्याभिषेक हुआ था।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग के भीतर कुंभा का निवास स्थान कटारगढ़ कहलाता है। जिसमें महाराणा कुंभा रहकर मेवाड़ के साम्राज्य की देखरेख करता था। इसलिए इस कटारगढ़ दुर्ग को मेवाड़ की आंख भी कहा जाता है। इसी कटारगढ़ दुर्ग में 1540 ईसवी में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। कटारगढ़ के उत्तर में झालीबाव बावड़ी तथा मामादेव का कुंड है जहां पर कुंभा की हत्या पुत्र उदा ने की थी।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग के प्रमुख उपनाम - कुंभपुर, कमलमीर, संकटकाल में मेवाड़ के राजाओं की शरण स्थली, कुंभलमेऊ, मच्छेंद्र आदि।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग भारत के सबसे विशाल दुर्गों में से एक है, जो लगभग 268 हेक्टेयर (1.03 वर्ग मील) के क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
  • कुंभलगढ़ दुर्ग के पूर्व में हाथिया गुड्डा की नाल है तथा कुंभलगढ़ किले की तलहटी में महाराणा रायमल के बड़े पुत्र पृथ्वीराज की छतरी बनी हुई है। पृथ्वीराज को उड़ना राजकुमार के नाम से भी जाना जाता है।
  • महाराणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ राजपरिवार की स्वामीभक्त पन्नाधाय ने उदय सिंह को बनवीर से बचाने के लिए अपने पुत्र चंदन की बलि दी तथा वहां से उदय सिंह को लेकर पन्नाधाय कुंभलगढ़ के किलेदार आशादेवपुरा के पास चली गई और कुम्भलगढ़ दुर्ग में उसका लालन-पालन किया था। बाद में इसी कुंभलगढ़ दुर्ग से महाराणा उदय सिंह का राज्याभिषेक हुआ था।
  • 1537 ईस्वी में कुंभलगढ़ दुर्ग से राज्याभिषेक होने के बाद बनवीर को परास्त कर उदयसिंह ने पुन: चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था। 
  • महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़ से ही मेवाड़ का शासन प्रारंभ किया था

आज की इस पोस्ट में कुम्भलगढ़ दुर्ग/कुम्भलगढ़ का किला पर एक विस्तृत लेख लिखा गया है। इसमें कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण, उपनाम, कुम्भलगढ़ दुर्ग का वास्तुकार/शिल्पी आदि को शामिल किया गया है।
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